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भाषण : डर्बनमें

तेज ज्योंका-त्यों बना हुआ है। और हमारे लिए भिन्न-भिन्न स्थानों में बराबर प्रयत्न किये जा रहे हैं। श्री मेरीमैन जैसे व्यक्तिको भी इस सम्बन्धमें विचार प्रकट करते समय हमारे पक्षमें ही बोलना पड़ा। और, उनके विचारोंके सम्बन्धमें टिप्पणी लिखते हुए 'ट्रान्सवाल लीडर' ने भी न्यायकी माँग की है।

ऐसी सहायताका मिलना हमें प्रोत्साहित करता है और निर्बलोंको भी सबल बनाता है। परन्तु साथ ही हम यह भी कहेंगे कि सत्याग्रह दूसरोंके प्रोत्साहनपर निर्भर नहीं करता। वह तो तलवारकी धार है। उसपर चलनेवाला दूसरोंकी सहायताका विचार करने नहीं बैठता।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-९-१९१०

२७२. सोराबजीकी रिहाई

श्री सोराबजी छूट आये हैं। किन्तु [ उन्हें ] इससे क्या ? संघर्षका दूसरा चरण जबसे आरम्भ हुआ, तभीसे उन्होंने अपना अधिकांश समय जेलमें बिताया है। जिस प्रकार नींवपर ही अधिकांश बोझ पड़ता है, उसी प्रकार [ संघर्षका ] अधिकांश बोझ श्री सोराबजीपर पड़ा और वे उसे उठाते रहे हैं । निःस्वार्थ भावसे मौन रहकर लड़नेवाले, श्री सोराबजी - जैसे रत्न समाजमें कम ही हैं। ऐसे रत्नसे कौमकी शोभा बढ़ती है, उसका नाम रोशन होता है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-९-१९१०

२७३. भाषण : डर्बनमें

सितम्बर २०, १९१०

प्रारम्भमें श्री गांधीने ट्रान्सवाल-संघर्षको वर्तमान स्थितिपर प्रकाश डाला। संघर्षमें यद्यपि मुट्ठी-भर सत्याग्रही ही भाग ले रहे हैं फिर भी संघर्षकी शक्ति कितनी प्रबल है, इसका अनुमान उन्होंने श्रोताओंको कराया। उन्होंने इस बातपर जोर दिया कि चूँकि निर्वासित किये जानेवाले लोग समस्त भारतीय समाजके लिए संघर्ष करनेवाले सैनिक हैं, इसलिए यह जरूरी है कि जब वे डर्बनमें उतरें तब डर्बनके सभी भारतीय उनका हार्दिक स्वागत-अभ्यर्थना करें। उन्होंने कहा, चूंकि श्री पोलकने भी भारत में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, इसलिए उनका स्वागत करना भी [ भारतीयोंका ] कर्तव्य है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-९-१९१०

१. उपनिवेशमें जन्मे भारतीयोंकी एक सभा । Gandhi Heritage Portal