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२७७. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

फोनिक्स,
नेटाल
सितम्बर ३०, १९१०

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

मैं यहाँ पोलकको लेने आया हूँ। कुछ ही दिनोंमें मैं स्थितिके बारेमें आपको लिखूंगा।

यह पत्र बैरिस्टर श्री मणिलाल डॉक्टर, एम० ए० का परिचय देनेके लिए लिख रहा हूँ । डॉक्टर कुछ समयसे मारिशसमें वकालत कर रहे हैं। मेरी रायमें वे कोई भी पेशा करनेवाले लोगोंके उस वर्गमें से हैं, जो निजी स्वार्थकी अपेक्षा राष्ट्रीय हित-साधनके लिए ही अपने पेशेका उपयोग करते हैं, या वैसा करनेका प्रयत्न करते हैं। वे एक प्रतिनिधिकी हैसियतसे कांग्रेस [ के अधिवेशन] में जा रहे हैं, और आपकी सलाह और आपका मार्गदर्शन उनके लिए बहुमूल्य होगा।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी० एन० ३८०१) से ।

२७८. रिचका सम्मान

ब्रिटिश भारतीय संघने श्री रिचको मानपत्र देनेका निर्णय करके बहुत उचित कार्य किया है। समितिका काम अच्छा हुआ है; इसका बहुत-कुछ श्रेय उनको जाता है। श्री रिचने अपनी चतुराई, लगन और सचाईसे समितिका नाम-उजागर किया है और अब ब्रिटिश सरकारको समितिकी बात सुननी पड़ती है। श्री रिच पहले केप टाउनमें उतरेंगे। वहीं वे भारतीय समाजके अतिथि होंगे। हमें विश्वास है कि समाज उनका उचित सम्मान करेगा और स्वयं मानका भागी बनेगा। आजके अंकमें श्री रिचका चित्र प्रकाशित किया जा रहा है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९१०


१. पोल्क एक प्रतिनिधिकी हैसियतसे भारत गये थे और २८ सितम्बर, १९१० को सुल्तान नामक जहाज द्वारा डर्बन वापस पहुँचे थे।