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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

स्थितिमें डाल दिया जाना पसन्द न करते हों उनको चाहिए कि वे गिरमिट प्रथाको बन्द करवानेके लिए कुछ उठा न रखें।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९१०

२८०. तार : एल० डब्ल्यू० रिचको

[ डर्बन ]
[ अक्तूबर ४, १९१०]

३२निर्वासितोंसे मिलिए । प्रवासी अधिनियमके अन्तर्गत उन्हें केपमें अधिकार है। पुराने अधिनियमके अनुसार दक्षिण आफ्रिकाके जन्मे या उसके अविवासी व्यक्तियोंको केपमें प्रवेशका भागमें अधिकार । यदि यह दावा स्वीकार न किया जाये, तो उन्हें अदालतमें अर्जी देनेकी सलाह दीजिए कि वह पंजीकृत भारतीयोंको यूनियनसे होकर ट्रान्सवाल जानेकी अनुमति दे।

एक दूसरे तारमें श्री गांधीने कहा कि उन आदमियोंमें से कुछको केपमें अधिवासीके अधिकार प्राप्त हैं और कुछ दक्षिण आफ्रिकामें जन्मेहैं;और श्री रिचको सलाह दी कि वे उनसे मिलकर पूछें कि क्या वे पंजीयनके कागजोंकी नकलोंके लिए अर्जी देंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९१०

२८१. भेंट : 'रैंड डेली मेल' को

डर्बन
[ अक्तूबर ४, १९१०]

यहाँ इस बातके काफी लक्षण दिखाई दे रहे हैं कि ट्रान्सवालमें फिर एशियाइयोंका आन्दोलन शुरू होनेको है। श्री गांधी और श्री पोलक दोनों इस सप्ताह सत्याग्रह आन्दोलनके सिलसिलेमें २९ निर्वासितोंको, जिनमें तीन चीनी भी शामिल हैं, लेकर १. श्री रिचको दोनों तार अक्तूबर ४, १९१० को केप टाउनमें मिले थे और वे अक्तूबर ७ को सर्वोच्च न्यायालय में निर्वासितोंके मुकदमे में पेश हुए थे । २. वे श्री पोलकके साथ सुल्तान नामक जहाजमें बम्बईसे डर्बन पहुँचे थे । परन्तु उन्हें उतरनेकी आज्ञा नहीं दी गईं थी और उन्हें प्रिंज़रेजेंट नामक जहाजसे केर टाउन भेज दिया गया था। वहाँ भी उन्हें जहाजसे उतरने की अनुमति नहीं मिली । ३. यह "सत्याग्रही ” शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था ।