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२८३. भाषण: स्वागत समारोहमें

डर्बन
अक्तूबर ५, १९१०

स्वागत-समारोह तो ठीक है, परन्तु वास्तविक कार्य तो संघर्षमे भाग लेना है। श्री रिच जरा भी आराम किये बिना काममें जुट गये हैं और इस प्रकार उन्होंने भारतीयोंके सामने एक उदाहरण उपस्थित किया है। श्री सोराबजी गिरफ्तार हो गये हैं; उनकी यह आठवीं गिरफ्तारी है और वे थोड़े समयके लिए भी संघर्षसे हटे नहीं हैं। आप लोगोंके लिए यह उदाहरण भी अनुकरणीय है। जबतक आप स्वयं सच्चे सत्याग्रही बनना नहीं सीख जाते, तबतक आप लोगोंको संघर्षमें होनेवाली विजयका पूरा लाभ मिल ही नहीं सकता। विजयी वे होंगे जो संघर्षमें भाग लेंगे और वे ही वास्तवमें जीवित हैं ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-१०-१९१०

२८४. भेंट : रायटर और साउथ आफ्रिका प्रेस एजेन्सीको

फोक्सरस्ट
[ शुक्रवार, अक्तूबर ७, १९१० ]

जोहानिसबर्गके भारतीय समाजके नेता मो० क० गांधी, ब्रिटिश भारतीय संघके मंत्री श्री पोलकसे मिलने डर्बन गये थे । वहाँसे मेल गाड़ी द्वारा रेंडको वापस जाते हुए वे कल शाम फोक्सरस्टसे गुजरे। उनकी गिरफ्तारी न होनेपर सभीको आश्चर्य हुआ। यह है भी विचित्र, क्योंकि श्री गांधोके पास अनुमतिपत्र नहीं था।

मैंने श्री गांधीसे भेंट की तो उन्होंने बतलाया कि आजसे दो वर्ष पहले--भारतीयोंके मतानुसार--सरकार द्वारा १९०७ के एशियाई अधिनियमको रद करनेका अपना वचन पूरा न करनेपर, उन्होंने जोहानिसबर्ग में लगभग २,५०० भारतीयोंके साथ अपना अनुमतिपत्र जला दिया था। गांधीने कहा कि वे स्वयं नहीं समझ पाये कि १. यह भाषण श्री पोलक तथा अन्य सत्याग्रहियोंके भारतसे दक्षिण आफ्रिका वापस आनेके अवसरपर उनके सम्मानार्थ पारसी रुस्तमजीके निवास स्थानपर काठियावाड़ आर्य मण्डल द्वारा आयोजित सभामें दिया गया था। २. इसे " सत्याग्रही" शीर्षकके अन्तर्गत प्रकाशित किया गया था । ३. देखिए “मॅट : रैंड डेली मेलको”, पृष्ठ ३५२-५३ । ४. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४५० ।