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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

उनको ऐसे बेरोकटोक कैसे गुजरने दिया जा रहा है, जबकि आज (शनिवार) शामको तीस अन्य सत्याग्रहियोंके साथ फोक्सरस्टसे गुजरनेवाले उनके पुत्रको तो निःसन्देह गिरफ्तार कर लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय समाजकी माँगें इतनी न्यायोचित हैं कि उनका स्वीकार न किया जाना समझमें नहीं आता। वे यह नहीं चाहते कि एशियाइयोंको मनमानी संख्या में निर्बाध रूपसे आने दिया जाये । वे केवल इतना कहते हैं कि भारतीयोंपर प्रवेशका प्रतिबन्ध सिर्फ इसीलिए न लगाया जाये कि वे भारतीय हैं। प्रवासी कानून कड़ी शैक्षणिक परीक्षाको व्यवस्था करके ट्रान्सवालमें चन्द उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंके सिवाय अन्य सभी भारतीयोंका प्रवेश रोक सकता है ।

गांधीने कहा कि उन्होंने तो अभीतक किसीको ऐसे प्रस्तावपर आपत्ति उठाते नहीं सुना। फिर भी जबतक इतनी सीधी-सी बातको मंजूर नहीं किया जाता, तबतक सत्याग्रह जारी ही रहेगा। अन्तमें, उन्होंने बड़े रोषके साथ इस बातका खण्डन किया कि फोक्सरस्टकी सर्किट कोर्टमें २६ दिसम्बरको पेश हुए जाली अनुमतिपत्रोंके मामलोंके साथ सत्याग्रहियोंका कोई भी सम्बन्ध है

[ अंग्रेजीसे ]
रैंड डेली मेल, १०-१०-१९१०

२८५. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

छोटाभाईका मुकदमा

इस मुकदमेकी अपीलकी सुनवाईका विवरण अब प्राप्त हो चुका है। इसमें बहुत बहस हुई। न्यायाधीश थे - श्री डी'विलियर्स, श्री मैसन और श्री ब्रिस्टो । श्री ग्रेगरो- वस्कीने जमकर बहस की। और न्यायाधीशोंके साथ उनका जो वाद-विवाद हुआ उसमें न्यायाधीशोंकी सहानुभूति श्री छोटाभाईकी ओर दिखाई दी। इस बार भी चर्चा १९०७ और १९०९१ के दोनों कानूनोंके सम्बन्धमें चली। न्यायाधीश श्री मैसनको तो यहाँतक लगा कि कानून किसी बालकको अप्रत्यक्ष रूपसे ऐसे अधिकारसे वंचित नहीं कर सकता जो उसे १९०७ से पहले मिला हुआ हो ।

न्यायाधीश श्री ब्रिस्टोने श्री चैमनेके हलफिया बयानकी आलोचना करते हुए कहा कि श्री छोटाभाई ट्रान्सवालके अधिवासी माने जायें या नहीं, इसका निर्णय श्री चैमनेकी रायके आधारपर नहीं किया जा सकता। [ उन्होंने कहा, ] श्री चैमने इस बातको क्या समझें ?

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-१०-१९१०

१. न्यायाधीश वेसेल्सके निर्णयके विरुद्ध, देखिए "बालकके मुकदमेका फैसला ", पृष्ठ ३४९ ।

२. यहाँ १९०८ होना चाहिए ।