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२८६. पत्र : गृह-मन्त्रीको

[ जोहानिसबगं ]
अक्तूबर ८, १९१०

महोदय,

मैं डर्बनसे अभी-अभी लौटा हूँ। वहाँ मैं उन ब्रिटिश भारतीयों और चीनियोंके सिलसिलेमें गया था जिन्हें इस प्रान्तसे भारत निर्वासित कर दिया गया था और जो प्रवेशका दावा करनेके लिए वापस आये हैं। मुझे मालूम है कि चीनियोंने पंजीयन- प्रमाणपत्र पेश किये थे; परन्तु प्रशासकीय आज्ञाके मातहत निर्वासित किये जानेके कारण आपके महकमेने इन चीनियोंके पुनः प्रवेश करनेके अधिकारको माननेसे और डर्बनके प्रवासी अधिकारीने इन्हें अभ्यागत-पास (विज़िटर्स पास) देनेसे इनकार कर दिया. - • उक्त पासोंके बिना वे ट्रान्सवाल नहीं जा सकते थे। क्या मैं जान सकता हूँ कि मुझे जो जानकारी मिली है वह सही है, और क्या सरकारका इरादा उन व्यक्तियोंको, जिन्होंने प्रमाणपत्र पेश किये हैं, इस कारण निषिद्ध प्रवासी माननेका है कि उनके विरुद्ध निर्वासनकी एक प्रशासकीय आज्ञा जारी है ? क्या मैं यह भी जान सकता हूँ कि इन लोगोंके सरकार द्वारा निषिद्ध प्रवासी करार दिये जानेकी हालत में क्या सरकार उन्हें दक्षिण आफ्रिकामें जहाजसे उतरनेकी अनुमति देकर अदालतके सामने अपने अधिकारकी जाँच करानेकी सुविधा देगी ? चूंकि यह मामला बहुत जरूरी है और चूँकि ऐसे मामले बहुत जल्द डर्बनमें भी खड़े हो सकते हैं, इसलिए मैं कृतज्ञ होऊँगा, यदि आप शीघ्र उत्तर देनेकी कृपा करें ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९१०