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२८८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

मंगलवार [ अक्तूबर ११, १९१०]

'ट्रान्सवाल लीडर' द्वारा समर्थन

'ट्रान्सवाल लीडर'ने एक बहुत कड़ा लेख लिखा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लेख, समझौता निश्चित है, यह समझकर लिखा गया है। लेखकने उसमें कहा है कि जनरल स्मट्सकी भूलसे ही लड़ाई लम्बे अर्सेतक चली। उसमें यह भी कहा गया है कि भारतीयोंकी माँग उचित है । लेखमें श्री छोटाभाईके मुकदमेके सम्बन्धमें बहुत कड़ी आलोचना की गई है और सिफारिश की गई है कि कानूनमें दोष हो तो उसे जल्दीसे-जल्दी सुधारा जाना चाहिए। इसके सिवा लेखमें सरकारी वकीलकी बहुत छीछालेदर की गई है।

श्री रिच

श्री रिच सोमवारको केप टाउनसे रवाना हुए। वे बुधवारको जोहानिसबर्ग पहुँचेंगे और ११ भारतीयोंके मामलेकी सुनवाई होनेके दिन तक फिर केप टाउन लौट जायेंगे ।

केपमें सत्याग्रही

केपमें श्री रिच थे, इसलिए ३२ में से ११ सत्याग्रही उतर सके। वे अभी तो अपना अधिकार सिद्ध करनेके लिए उतारे गये हैं। इसे [ न्यायालयमें ] सिद्ध करना शेष है। इसका प्रयत्न किया जा रहा है। सत्याग्रही भारतीय समाजके अतिथि हैं और श्री आदम गुल उनका एवं श्री रिचका स्वागत-सत्कार कर रहे हैं। किम्बर्लेके भारतीय संघने श्री रिच और श्री पोलकको समर्पित करनेके लिए मानपत्र भेजे हैं।

मानपत्रोंके लिए चन्दा

मानपत्रोंके लिए तीन चन्दे किये जा रहे हैं। एक तो संघकी ओरसे दिये जानेवाले मानपत्रके लिए श्री काछलिया, श्री सोराबजी, श्री मेढ और श्री सोढा कर रहे हैं; दूसरा तमिल मानपत्रके लिए श्री थम्बी नायडू कर रहे हैं; और तीसरा हिन्दू मण्डलके मानपत्रके लिए किया जा रहा है। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके मानपत्र तैयार हो गये हैं। यदि श्री पोलक शनिवार तक आ जायेंगे तो तमिल समाजकी ओरसे रविवारको मानपत्र और भोज दिया जायेगा ।

[ गजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९१०


१. देखिए " तार : एल० डब्ल्यू० रिचको”, पृष्ठ ३५२ ।


२. देखिए “ पत्र : गृह-मन्त्रीको”, पृष्ठ ३५६ ।


३. अक्तूबर १५ । पोलक अक्तूबर ९ को जोहानिसबर्ग पहुँचे थे, और उसी सप्ताह फिर बाहर चले गये थे ।