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पत्र: मगनलाल गांधीको

निर्वासन गैर-कानूनी है। श्री लॉटन, के० सी०, ने ऐसी आज्ञाको 'स्टार चैम्बरकी मनमानी' कहा है। यदि नारायणस्वामी और उसके साथी ऐसे निर्वासनकी उपेक्षा करके उस देशमें वापस लौटनेकी कोशिश करते हैं जो उनकी जन्मभूमि है या जिसे उन्होंने स्वदेश माना है, तो इसे मैं उचित ही कहूँगा। मैं समझता हूँ कि न्याय और औचित्यका हर प्रेमी यही कहेगा कि अपनी इस कोशिश में उन्हें दर-दर भटकाया जा रहा है । कल्पनातीत कठिनाइयाँ उनके मार्गमें डाली जा रही हैं। क्या ऐसा करना जरूरी है ? सत्याग्रहियोंसे कहा जाता है कि देशका कानून तोड़ते हुए यदि उन्हें तकलीफें उठानी पड़े तो उसकी शिकायत नहीं करनी चाहिए। सत्याग्रही इस सलाहकी कद्र करते हैं। जो कानून उनकी अन्तरात्माको अग्राह्य हैं उनकी अवज्ञा वे जानबूझकर कर रहे हैं और इसके साधारण परिणामोंसे बचनेकी उनकी कोई इच्छा नहीं है। परन्तु जिन मामलोंकी तरफ मैंने अभी ध्यान दिलाया है, उनमें दी गई तकलीफें तो लगभग मृत्युदण्ड देनेके समान हैं और मैं विश्वासपूर्वक कहता हूँ कि जनता ऐसे कार्योंका समर्थन कभी नहीं करेगी। इस देशमें शीघ्र ही बादशाहके प्रतिनिधि आनेवाले हैं और संघ- राज्यके पहले संसदका उद्घाटन भी होने जा रहा है। मुझे विश्वास है कि इस अवसरपर दक्षिण आफ्रिकाके लोग चाहेंगे कि इस संघके प्रदेशोंमें रहनेवाली सभी कौमोंके मनमें आनन्द और सद्भावका वातावरण हो । किन्तु क्या आज दक्षिण आफ्रिकाके किसी भी भागमें बसनेवाले भारतीयोंसे अपेक्षा की जा सकती है कि वे इस मासके अन्तमें होनेवाले आनन्दोत्सवमें भाग लें और जो सद्भाव अन्य सब वर्गोंमें व्याप्त है वह उनमें भी दिखाई दे ?

आपका
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
रैंड डेली मेल, १८-१०-१९१०

२९१. पत्र: मगनलाल गांधीको

टॉल्स्टॉय फार्म
आश्विन वदी १ [ अक्तूबर १९, १९१० ]

चि० मगनलाल,

फार्म पहुँचनेपर तुम्हारा पत्र पढ़ा। फिलहाल तो मुझे रोज जोहानिसबर्ग जाना पड़ता है। तुम अपना पत्र फार्मके पतेसे ही भेजते रहना। चि० छगनलालका पत्र पढ़ा। कल उनके पत्रसे कुछ अधिक समाचार प्राप्त होगा। [ सांसारिक सुखोंके प्रति ] चि० नारणदासके मनकी उदासीन स्थिति शुभ लक्षण है। उसे प्रोत्साहन मिलना


१. ऐसा लगता है कि यह पत्र १९१० में, जब छगनलाल गांधी दक्षिण आफ्रिकासे बाहर गये हुए थे, लिखा गया था । १९१० में आश्विन बदी १, अक्तूबर १९ की पड़ी थी ।