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२९५. पत्र : एशियाई-पंजीयकको

डर्बन
अक्तूबर २५, १९१०

श्री एम० चैमने

एशियाई-पंजीयक

डर्बन क्लब
महोदय,

श्री पेरुमल पिल्ले और अदालतकी आज्ञासे सैलिसबरी टापूमें रोक लिये गये १८ अन्य ब्रिटिश भारतीयोंके सम्बन्धमें निवेदन है कि उक्त भारतीय यह दावा करते हैं कि उन्होंने ट्रान्सवालमें स्वेच्छया पंजीयन कराया था, और उनमें से १५ व्यक्ति अपने पंजीयन-प्रमाणपत्रोंकी नकले पानेके लिए अर्जी देना चाहते हैं ।

मैंने आज तीसरे पहर मुख्य प्रवासी प्रतिबन्धक अधिकारी, श्री हैरी स्मिथसे भेंट की। मेरी जानकारीके अनुसार आपने इन्हें १९०८ के अधिनियमके अन्तर्गत स्वीकृत विनियमोंके खण्ड १० के अन्तर्गत अर्जियाँ आदि लेनेके लिए अधिकारी नियुक्त किया है। श्री स्मिथने मुझे सूचित किया है कि वे इन लोगोंकी अर्जियाँ नहीं ले सकते, क्योंकि वे एक बार निर्वासित किये जा चुके हैं। इन लोगोंका कहना है कि उन्हें इस खण्डके अर्थके अनुसार निर्वासित नहीं किया गया है; और यदि ऐसा हो तो भी अर्जियाँ देनेपर आप १९०८ के इस अधिनियम और विनियमोंके अन्तर्गत इनकी अर्जियाँ लेनेके लिए, और यदि वे अर्जियाँ अधिनियमकी शर्तोके अनुसार दी गई हों तो उन्हें स्वीकार करनेके लिए बाध्य हैं ।

इसलिए मैं अपने मुवक्किलोंकी ओरसे आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या आप श्री स्मिथ या किसी अन्य अधिकारी या व्यक्तिको, प्रमाणपत्रोंकी नकलें देनेके बारेमें, उनकी अर्जियाँ लेनेकी सलाह देनेको तैयार हैं ?

मैं आपको यह पत्र डर्बनके पतेपर भेज रहा हूँ, क्योंकि इस मामलेका निपटारा तुरन्त होना जरूरी है; कारण, आपका निर्णय प्रतिकूल होनेकी स्थितिमें मेरे मुवक्किलोंका इरादा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई मोहलतके अन्दर ही, इस सिलसिलेमें, उसके ट्रान्सवाल प्रान्तीय विभागको अर्जी देनेका है।

आपका
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९१