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२९६. पत्र : एशियाई-पंजीयकको

डर्बन
अक्तूबर २६, १९१०

महोदय,

सैलिसबरी द्वीपके भारतीयोंके सम्बन्धमें आपका आजका पत्र मिला ।

नहीं कह सकता कि ये लोग फोक्सरस्ट पहुँचनेपर क्या करेंगे? उनको बता दिया गया है कि उन्हें सन् १९०८ के अधिनियम ३६ के अनुसार पंजीयन-प्रमाणपत्रोंकी नकलोंके लिए अर्जियाँ देनेका और यदि अर्जियाँ नियमानुसार हों, तो नकलें पानेका कानूनी अधिकार है। यदि यह सूचित करनेकी कृपा करें कि आप सन् १९०८ के अधिनियम ३६ और विनियमोंके अनुसार उनको वहाँ अर्जियाँ देनेकी सहूलियत दे सकेंगे या नहीं, तो मैं आपका आभार मानूंगा ।'

आपका
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९१०

२९७. दीवाली

हम पाश्चात्य संस्कृतिमें इतने अधिक डूब गये हैं कि हिन्दू, मुस्लिम अथवा पारसी नव-वर्षको हम अपना नया वर्ष नहीं कह सकते। हम इस लेखका शीर्षक 'नया वर्ष ' दें तो उसका अर्थ कुछ भी न होगा। किन्तु यदि जनवरीके [पहले ] अंकमें हम 'नया वर्ष' शीर्षक दें तो सब समझ लेंगे कि १९११ की साल है। ऐसा होनेका कोई समुचित कारण नहीं है। यदि हम अपनी संस्कृतिको भूल न बैठे हों तो हम तीनों नये वर्ष मनायें और चाहें तो पश्चिमका भी नया वर्ष मनाकर चार नये वर्ष मनायें। मुसलमानोंका वर्ष बदले तब सब भारतीय उसको मनायें। पारसियोंका वर्ष बदले तब उसको भी मनायें और हिन्दू वर्ष बदले तब उसको भी मनायें। यह हमारे भाईचारेका और एक-राष्ट्री- यताका चिह्न होगा। वस्तुतः हमें दिखाई यह देता है कि एक-दूसरेके नये वर्षके सम्बन्धमें एक-दूसरेकी हम बहुत परवाह नहीं करते। सब भारतवासी एक-राष्ट्र हैं, ऐसी भावना उत्पन्न करनेके लिए किसी बड़े प्रयासकी आवश्यकता नहीं है। हम एक-राष्ट्र और भाई- भाई तो हैं ही। केवल हमारा मन सरल हो जाये और हम दम्भपूर्ण अभिमान छोड़ दें तो तत्काल ही हमें वह ज्ञान फिर प्राप्त हो जाये ।

१. चैमनेने उसी दिन शामको इसका यह उत्तर दिया था कि उनको भर्जियाँ लेने और, यदि वे नियमानुसार हों तो, नकलोंकी अनुमति देनेकी हिदायत मिली है ।