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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दीवाली मंगलवारको आ रही है। यह हिन्दुओंका बड़ा त्योहार है। हम इस अवसरपर प्रत्येक हिन्दूके लिए सुख-शान्तिकी कामना करते हैं। परन्तु जिस उपायसे हमारी कामना फलीभूत हो, वह उपाय हमें नहीं सूझता। हिन्दुओंके पड़ोसियोंको सुख- शान्ति न होगी तो हिन्दू स्वयं उसका उपभोग नहीं कर सकेंगे। नया वर्ष उसीके लिए अच्छा सिद्ध होता है जिसने पिछले वर्षका अच्छा उपयोग किया हो । चौमासा ठीक न गया हो तब भी हम जाड़ोंकी फसल अच्छी होनेकी आशा रखें तो वह हवाई किले बनानेके समान होगी। ईश्वरीय नियम यह नहीं है कि जो हम चाहें वही हमें मिल जाये । नियम तो ऐसा है कि हम जिसके योग्य होते हैं वही मिलता है। अर्थात् हमारी इच्छा तभी पूरी होगी जब उसके पीछे उस इच्छाके अनुरूप करनीका बल हो ।

इसलिए हम प्रभुसे प्रार्थना करते हैं कि जिन हिन्दुओंने इस वर्षमें सत्कर्मकी पूँजी संचित की हो, जिन्होंने भारतीय-मात्रको अपना भाई समझा हो और उससे प्रेम रखा हो, जिन्होंने ईमानदारीसे अपनी आजीविका अर्जित की हो और जिन्होंने दुखियोंका दुःख बॅटाया हो, उन हिन्दुओंकी दीवाली सफल हो और नया वर्ष उनकी सद्- भावनाओंको बल प्रदान करे। हम ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि जिन हिन्दुओंने अज्ञानसे जाने या अनजाने अपने कर्तव्यका पालन न किया हो, जिन्होंने अपना स्वार्थ- मात्र सिद्ध करनेमें समय बिताया हो, जिन्होंने भारतके प्रति प्रेम-भावके बजाय द्वेष-भाव रखा हो, उन हिन्दुओंमें पश्चात्तापकी भावना जाग्रत हो और नये वर्षमें उनको सद्बुद्धि प्राप्त हो जिससे उन्हें अपने कर्तव्यका ज्ञान हो । अपनी इस इच्छाको फलवती बनानेमें हम अपने पाठकोंकी सहायता चाहते हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९१०

२९८. नवम्बरमें भारतीयोंका कर्तव्य

श्री दाउद मुहम्मदने जनरल बोथाको तार दिया है कि उन्हें लड़ाईका अन्त कराना चाहिए और यदि वे उसका अन्त नहीं करा सकते तो नवम्बरमें संघ-संसदके अधिवेशनके समय जो खुशियाँ मनाई जायेंगी उनमें भारतीय समाज भाग नहीं ले सकेगा। यह बात ठीक है। नवम्बर मासमें लड़ाई समाप्त न हो तो हमें शोक मनाना है। समझदार भारतीय जानते हैं कि नारायणस्वामीकी मृत्युके कारण हमें शोक मनाना चाहिए। हम उन लोगोंके राग-रंगमें भाग न लें, उनके खेल-तमाशे देखने न जायें, राग- रंगके समय घरमें ही बैठे रहें और अपनी दूकानोंको न सजायें तो राज्यकर्ताओंपर उसका प्रभाव पड़े बिना न रहेगा। ऐसा करके हम उन्हें बता सकते हैं कि लड़ाईकी समाप्ति न होनेके कारण सारा भारतीय समाज खिन्न और अप्रसन्न है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९१०