२९९. पत्र : मगनलाल गांधीको
टॉल्स्टॉय फार्म
कार्तिक सुदी २ [ नवम्बर ४, १९१० ]
- सिय राम प्रेम पियूष पूरन होत जनम न भरत को ।
- मुनि मन अगम यम नियम सम दम विषम व्रत आचरत को ।।
- दुख दाह दारिद दंभ दूषन सुजस मिस अपह्रत को ।
- कलिकाल तुलसीसे सठन्हि हठि राम सनमुख करत को ।।
यह अयोध्याकांडका अन्तिम छन्द है। इसपर विचार करना। इसकी ध्वनि मेरे कानोंमें गूंजती ही रहती है। इस कठिन समयमें भक्तिको प्रधान पद मिला है। भक्ति करनेके लिए भी यम-नियम आदि तो चाहिए ही। वे हमारी शिक्षाके मूल हैं। उनके बिना सारी चतुराई व्यर्थ है। मैं तो इसका अनुभव क्षण-क्षण कर रहा हूँ। अन्य आशीर्वाद तुम्हें क्या दूं ?
चि० आनन्दलालके पुत्रकी मृत्यु हो गई, इससे दुःख होता है, लेकिन वह तभी जब उसका खयाल करता हूँ; यों भावनाएँ तो मर ही चुकी हैं।
मोहनदासके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९३९) से ।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।
३००.प्रस्तावित नया प्रवासी विधेयक
गत मासकी ३१ तारीखके 'ट्रान्सवाल लीडर' में उसके केप टाउन-स्थित संवाददाताका निम्न तार छपा था :
मुझे मालूम हुआ है कि उपनिवेश-सचिव [ संसद्के ] इस अधिवेशनके आरम्भिक दौरमें ही एक विधेयक प्रस्तुत करेंगे जिसका उद्देश्य ट्रान्सवालकी वर्तमान स्थितिम सुधार करनेके अतिरिक्त संघीय प्रान्तोंमें प्रवासी कानूनका काफी हद तक एकीकरण करना भी होगा ।
१. इस पत्रके विषयले जान पड़ता है कि यह २८ जनवरी, १९१० को मगनलाल गांधी के नाम लिखे पत्र (देखिए पृष्ठ १४७) के बाद लिखा गया था; क्योंकि उस पत्रमें मगनलाल गांधी के ब्रह्मचर्यादिका उल्लेख है । सन् १९१० में कार्तिक सुदी २, नवम्बरको ४ तारीखको पड़ी थी । १०-२४