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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जहाँतक ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, मुझे मालूम हुआ है कि ब्रिटिश भारतीयों को कतिपय काफी महत्त्वपूर्ण रियायतें देनेका विचार है। इनसे दक्षिण आफ्रिकाके रुखको कमजोर किये बिना, कानून वर्तमान नियमोंको अपेक्षा अधिक व्यावहारिक और युक्तिसंगत बन जायेगा। इन रियायतोंमें विशेष योग्यता प्राप्त भारतीयोंका एक निश्चित संख्या में प्रतिवर्ष प्रवेश भी शामिल होगा (पहले यह संख्या प्रतिवर्ष छः सुझाई गई थी; किन्तु यह इससे अधिक भी रखी जा सकती है।) यह और अन्य सुधार उन सुधारोंमें से हैं जिन्हें 'लीडर' ने बहुत पहले प्रवासी कानूनके एकीकरणके सम्बन्धम प्रवास-सम्बन्धी प्रतिबन्धोंको, सम्बन्धित सारे लोगोंके लिए अधिक सन्तोषप्रद बनानेकी वृष्टिसे, आवश्यक बताया था।

इसका अर्थ, जैसा कि स्वाभाविक है, यह नहीं है कि सब उपनिवेशोंमें कानून एक-जैसे हो जायेंगे, क्योंकि नेटालकी स्थिति विशेष रूपसे जटिल है। नेटालम लगाये जाने वाले प्रतिबन्धोंके सम्बन्धमें वहाँ बहुत चिन्ता अनुभव की जा रही है, क्योंकि उस प्रान्तके अधिकतर प्रतिनिधियोंका कहना है कि [वहाँके ] चीनी उद्योगका अस्तित्व बागानके मालिकों (प्लांटर्स) द्वारा भारतीय गिरमिटियोंको लगातार पाते रहनेपर निर्भर है। नेटालके कुछ क्षेत्रोंसे यह सुझाव दिया गया है कि समुद्रतटके उस बहुत ही सीमित क्षेत्रमें इन मजदूरोंको लानेकी छूट दी जाये जिसमें गन्नेके खेत और दूसरे बागान भी हैं। सरकार वास्तव में क्या प्रस्ताव रखेगी, यह तो जनरल स्मट्स द्वारा अपना विधेयक प्रस्तुत करनेपर ही प्रकट होगा; किन्तु प्रत्येक व्यक्ति यही अनुभव करेगा कि पिछले प्रवासी कानूनके फलस्वरूप देश जिन कठिनाइयोंमें फँस गया था उन्हें देखते हुए नये विधेयकका विवरण समय रहते संसदके सदस्यों और जनता, दोनों के सम्मुख रख दिया जाना चाहिए, जिससे वे उसपर बहुत सावधानीसे विचार कर सकें।

हम नहीं जानते कि 'ट्रान्सवाल लीडर' के संवाददाता द्वारा लगाया हुआ अनुमान ठीक है या नहीं। यदि उसका अनुमान ठीक है, और नये प्रवासियोंके सम्बन्धमें बननेवाली व्यवस्था लॉर्ड ऍम्टहिलके सुझाये हुए आधारोंपर की गई तथा कानूनमें कोई रंगभेद नहीं किया गया तो सत्याग्रह समाप्त हो जायेगा, बशर्ते कि १९०७ का अधिनियम २ भी साथ-ही-साथ वापस ले लिया जाये।

किन्तु समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंमें अन्य प्रान्तोंके प्रवासी कानूनोंके प्रस्तावित एकीकरणके सम्बन्धमें घबराहट है। केप और नेटालके भारतीय ट्रान्सवाल पंजीयन अधिनियमको स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि तटवर्ती प्रान्तोंके लिए पंजीयन बिलकुल अनावश्यक है। वे अनावश्यक रूपसे कठोर उस शैक्षणिक परीक्षाको भी स्वीकार नहीं कर सकते जो कि ट्रान्सवालकी विशिष्ट परिस्थितियोंको देखते हुए वहाँके भारतीयोंको मान्य हो सकती है। समस्त दक्षिण आफ्रिकामें प्रतिबन्धकी नीतिको ब्रिटिश भारतीयोंने स्वीकार कर लिया है; किन्तु उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे नेटाल