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३०२. सत्याग्रही किसे कहना चाहिए ?

श्री वलीभाई पीरभाई, जो हमेशा सत्याग्रहियोंकी सेवा और सहायता करते रहते हैं, लिखते हैं कि श्री मेढ जिस दिन गिरफ्तार किये गये थे, उसी दिन उन्हें तीन पत्र मिले थे । उन्हें पढ़कर वे तुरन्त फोक्सरस्ट गये । वहाँ श्री मुल्लाकी दूकानपर स्नानादि करनेके बाद वे गिरफ्तार होनेके लिए रवाना हो गये । लगता है, [ उन्हें खबर लग चुकी थी कि ] उनकी बहन तीन बच्चे छोड़कर चल बसी हैं। [ वे आगे लिखते हैं ], यदि ये चिट्ठियाँ मुझे दिखाई गई होतीं तो मैं श्री मेढको न जाने देता। खैर, सत्याग्रहीकी नजरमें खुशी और गम दोनों एक-से हैं। यदि श्री वलीभाई पीरभाईको पता होता और वे मेढको रोकते तो यह उनके लिए शोभनीय होता । अपनी बहनकी मृत्युका समाचार पानेपर भी रुक रहनेकी बात मनमें न लाते हुए, अपने कर्तव्यको समझकर श्री मेढ जेल चले गये। इस प्रकार उन्होंने अपने सच्चे सत्याग्रही होनेका एक और सबूत दिया है। श्री मेढ बहुत दृढ़ और मँजे हुए सत्याग्रहियों में से हैं। कारावासके कष्टोंको वे घोलकर पी गये हैं। हम उन्हें जितनी भी मुबारकबादी दें, थोड़ी है। श्री सुरेन्द्रराय मेढने समाजका मस्तक ऊँचा किया है।

हम कह आये हैं कि सत्याग्रही वही है जो सत्यके लिए सब कुछ त्याग देता है- धन जाने देता है, जमीन जाने देता है, सगे-सम्बन्धियों, माता-पिता, पुत्र-कलत्र, सबको छोड़ देता है और अपने प्रिय प्राण भी न्यौछावर कर देता है । जो व्यक्ति इस प्रकार सत्यकी खातिर देता है, वह पाता भी है। प्रह्लादने सत्यकी खातिर अपने पिताकी आज्ञाकी अवज्ञा की। ऐसा करके उसने न केवल सत्याग्रहकी शान रखी, बल्कि पुत्रकी हैसियतसे अपने कर्तव्यका पालन भी किया। सत्याग्रही बनकर उसने अपना, साथ-ही- साथ अपने पिताका भी उद्धार किया। जिसमें प्रह्लादकी जैसी अटल निष्ठा न हो वह सत्याग्रहमें अन्ततक टिक ही नहीं सकता ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-११-१९१०

३०३. प्रागजी देसाईकी प्रतिज्ञा

श्री प्रागजीभाई देसाईने लिखा है कि इस बार जेलमें अधिकारियोंने बहुत अत्याचार किया है। “परन्तु ज्यों-ज्यों अत्याचार किये जाते हैं, त्यों-त्यों मेरा मन मजबूत होता जाता है ।" इस समय जेलमें उन कैदियोंको, जिनकी सजा तीन महीने से कमकी है, घी देना बिलकुल बन्द कर दिया गया है। इसलिए सभीने, जिस भोजनके साथ घी दिया जाता था, उसे लेना बन्द कर दिया। इस सम्बन्धमें प्रागजीने ही अन्त तक अपनी

१. प्रागजी खंडूभाई देसाई; एक सत्याग्रही, जो इंडियन ओपिनियन में प्रायः गुजराती में लिखा करते थे ।