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३१२. पत्र : अखबारोंको

[ जोहानिसबर्ग ]
नवम्बर १४, १९१०

महोदय,

पूनियाके प्रसिद्ध मामलेके बाद भारतीय समाज समझ रहा था कि सीमा-पार करनेवाली स्त्रियोंको रोका-टोका नहीं जायेगा । मैं ऐसी स्त्रियोंको जानता हूँ जिनको निर्विरोध सीमा पार करने दिया गया था । किन्तु अभी एक महीनेसे कुछ पहले जब श्रीमती गांधी अकेली यात्रा कर रही थीं और उनको रोका गया, मैं समझ गया कि अब नीति बदल गई है। इसलिए जब कभी सत्याग्रहियोंकी पत्नियों अथवा अन्य महिला रिश्तेदारोंने नेटालसे सरहदके इस पार आना चाहा, तब सावधानीके विचारसे मैं प्रिटोरिया स्थित मुख्य प्रवासी अधिकारीको, जो एशियाइयोंके पंजीयक भी हैं, इन बह्नोंकी गतिविधि सूचित करता रहा हूँ, और साथ ही सम्बन्धित सत्याग्रहियोंसे उनका रिश्ता क्या है, यह भी बताता रहा हूँ। और अभीतक इसमें कोई वास्तविक कठिनाई पैदा नहीं हुई थी। मैं आठ दिन पहले श्रीमती सोढाके साथ नेटालसे लौटा । ये इस समय डीपक्लूफ जेलमें कैद एक सत्याग्रहीकी पत्नी हैं । उनका अपराध यह है कि स्वतन्त्र ब्रिटिश प्रजाजनके नाते और एशियाई कानूनसे भिन्न इस प्रान्तके प्रवासी अधिनियम में बताई गई योग्यता रखने के नाते उन्होंने इस प्रान्तमें प्रवेश पानेके अपने अधिकारकी परीक्षा करनी चाही ।

नेटालसे रवाना होनेसे पहले, हमेशाकी भाँति, इस बार भी प्रवासी अधिकारीको मैंने तार द्वारा सूचना भेज दी थी कि मैं श्रीमती सोढाके साथ सरहदको लाँच कर इधर आ रहा हूँ । परन्तु फोक्सरस्ट पहुँचनेपर मुझे ज्ञात हुआ कि पुलिसको हिदायतें मिल चुकी हैं कि वह श्रीमती सोढाको रोक ले । मेरे साथ कुछ अन्य सत्याग्रही भी थे। उनके सहित श्रीमती सोढाको लेकर मैं गाड़ीसे उतर गया। श्रीमती सोढाके साथ उनका एक गोदका, एक तीन सालसे कम उम्रका और एक बारह सालका बच्चा भी है । मैं उन्हें और उनके बच्चोंको चार्ज दफ्तर में ले गया, जहाँ मुझे श्रीमती सोढाको लेकर दूसरे दिन सुबह हाजिर होनेके लिए कहा गया। जब मैंने इसका जिम्मा लिया तब उन्हें मेरे साथ जानेकी इजाजत मिली। कहनेकी जरूरत नहीं कि इससे पहले श्रीमती सोढाने अपने जीवनमें न तो चार्ज दफ्तर देखा था और न कभी पुलिसके सिपाहीने उनसे बातचीत की थी।

एक भारतीय दूकानदारने कृपापूर्वक उनके और उनके बच्चोंके रहने तथा खानेका प्रबन्ध किया। दूसरे दिन उनपर निषिद्ध प्रवासी होनेका अभियोग लगाया गया और दर

१. यह इंडियन ओपिनियन में श्रीमती सोढाका मुकदमा" शीर्षकसे दक्षिण आफ्रिकी समाचार- पत्रोंके नाम एक पत्रके रूपमें प्रकाशित हुआ था ।

२. देखिए "तार : मुख्य प्रवासी अधिकारीको", पृष्ठ ३७३ ।