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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुरुषोंसे तो लड़ाई है ही; अब वह पंजीकृत माता-पिताओंके एक खास वर्गके बच्चोंको उपनिवेश से बाहर निकालनेकी कोशिश कर रही है । परन्तु हम अपने स्त्री-समाजके विरुद्ध ऐसे अपुरुषोचित आक्रमणके लिए तैयार नहीं थे। श्रीमती सोढाकी किसीसे कोई व्यापारिक प्रतिस्पर्धा नहीं है। उनकी प्रकृति निस्सन्देह निर्दोष है। समस्त दक्षिण आफ्रिकामें शायद ही उनसे अधिक शान्त और सौम्य महिला मिले। देशके आम कानून (कॉमन लॉ) के खिलाफ भी उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। अधिकारियोंको सन्तुष्ट करनेका हर सम्भव उपाय किया जा चुका है। मालूम होता है, अब वे स्त्रियोंको सजा देनेपर तुल गये हैं; क्योंकि उन्होंने देख लिया है कि उनके पतियोंको दी गई सजाएँ अपने उद्देश्यमें निष्फल साबित हुई हैं। स्त्रियोंके विरुद्ध छेड़े गये इस युद्धके समाचार जब बाहर पहुँचेंगे तब समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयों और भारतकी जनताके दिलोंपर इसका कितना भयानक असर होगा, इसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। गृह- मन्त्रीको स्पष्ट ही इस बातकी कोई चिन्ता नहीं दीख पड़ती। किन्तु यह कल्पनातीत है कि श्रीमती सोढाके खिलाफ की जा रही इस अन्यायभरी, अत्यन्त निर्दयतापूर्ण और अनावश्यक कार्रवाईको दक्षिण आफ्रिकाकी जनता पसन्द करेगी। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसपर राजनिष्ठ महिला संघ (लॉयल विमेन्स गिल्ड) तथा इसी तरहकी अन्य संस्थाओंको विचार करना चाहिए। एशियाइयोंके आव्रजनके प्रश्नपर अथवा सामान्य सत्याग्रहके प्रश्नपर उनके कुछ भी विचार हों, लेकिन क्या दक्षिण आफ्रिका संघके ईसाई स्त्री-पुरुष सरकार द्वारा शासनका मजाक बनानेके इस नवीनतम प्रयासकी एक स्वरसे निन्दा नहीं करेंगे ?

मुझे विश्वास है कि श्रीमती सोढाका यह कार्य शासनकी अवज्ञा नहीं गिना जायेगा । इस देशके विचित्र कानूनोंसे वे उतनी ही अनजान हैं जितना कि एक नवजात शिशु हो सकता है। अगर कोई अपराधी है तो वह इस पत्रका लेखक ही है जिसकी सलाह और सहायतासे उक्त महिलाने संघके इस भाग में प्रवेश किया है। जो हो, जिस समय यह प्रदेश एक शाही उपनिवेश था मुझे उस समयकी सरकारका एक कृपापूर्ण कार्य याद आ रहा है। बात सन् १९०६ की है। केप टाउनके डॉ० अब्दुर्रहमान बगैर अनुमतिपत्र ट्रान्सवालमें चले आये। इसकी खबर लॉर्ड सेल्बोर्नको लगी । उन्होंने डॉ० अब्दुर्रहमानके कार्यकी वैधताका कोई सवाल उठाये बिना कैप्टन हैमिल्टन फाउलको, जो उस समय अनुमतिपत्रोंके [ महकमेके] मुख्य सचिव थे, आदेश दिया कि डॉ० रहमानके पास अनुमतिपत्र भेज दिया जाये । परन्तु आजकी बलशाली और उत्तरदायी संघ-सरकारमें इतनी शालीनता और स्त्रियोंके प्रति इतना दाक्षिण्य कहाँ कि वह एक निर्दोष भारतीय महिलाको भी तंग करनेसे बाज आये !

आपका
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रान्सवाल लीडर, १५-११-१९१०