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३१३. छगनलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश
[ नवम्बर १५, १९१० के आसपास ] '
... [ सो ] देख सकता हूँ । स्वास्थ्यकी दृष्टिसे यदि वह स्थान तुम्हें अनुकूल न पड़ता हो, तो तुम्हारा यहाँ आ जाना ही ठीक होगा। काशीको यहाँ अभीतक बुलाया जा सकता है और वह तुम्हारी अनुपस्थितिमें भी यहाँ रह सकती है। मेरी इच्छा है कि तुम स्वस्थ-चित्त हो जाओ ।
मोहनदासके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०७३) से । सौजन्य : छगनलाल गांधी ।
३१४. पत्र : मगनलाल गांधीको
टॉल्स्टॉय फार्म
कार्तिक सुदी १३ [ नवम्बर १५, १९१० ]
देशकी स्थिति बहुत खराब हो चली है। प्लेगके बारेमें मैंने बहुत सोचा है । मुझे लगता है कि उसका आना ठीक ही हुआ । अन्य सब देशोंसे वह समूल नष्ट किया जा सकता है, परन्तु भारतसे नहीं । हमने भारतको, जो पुण्यभूमि है, धर्मका गलत अर्थ लगाकर या धर्मको पूर्णतया छोड़कर अधर्म-भूमि बना दिया है । इसीलिए [ प्लेग ] वहाँसे [समूल ] नहीं जाता। लोगोंने इधर-उधर भागते फिरना तो सीखा है, परन्तु वे अपने मनकी एक भी वृत्ति नहीं बदलते । वे अधर्ममय आचरण करते ही रहते हैं और अपने इर्द-गिर्द स्वच्छता बनाये रखने आदिके नियमों तक को नहीं सीखते । उन्हें जो भी अन्धविश्वास- पूर्ण उपाय बता दिया जाता है, बस वही करनेको तत्पर रहते हैं । यह बात किसीको नहीं सूझती कि पीछे रह जानेवाले उन गरीबोंका क्या हाल होगा जो भाग कर नहीं जा सकते । इस तरह हम कैसे सुधर सकते हैं? हमारा कुटुम्ब भी इस आरोपसे मुक्त नहीं है । फिर यदि स्वदेशसे ज्वर इत्यादिके समाचार मिलते हैं तो उसमें अचरजकी कौन-सी बात है ?
१. श्रीमती काशीके उल्लेखसे यह प्रतीत होता है कि पत्र लगभग उसी समय लिखा गया था जब गांधीजीने मगनलाल गांधी के नाम पत्र लिखा था; देखिए अगला शीर्षक ।
२. छगनलाल गांधीकी पत्नी जो उस समय भारतमें थीं ।
३. लगता है कि यह पत्र १९१० में दक्षिण आफ्रिकासे छगनलाल गांधीकी अनुपस्थितिके दौरान लिखा गया था । कार्तिक सुदी १३, उस वर्षं नवम्बरकी १५ तारीखको पड़ी थी ।