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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसी परिस्थितिमें काशीको यहाँ बुलानेमें तुम्हारा मन हिचकता है या लगता है कि अविनय हो जायेगी, सो सब समझमें आ सकता है। फिर भी, यह बात विचार करने योग्य है। छगनलाल काशीको ले जाकर अब पूछ रहा है और 'हरिकी ऐसी ही इच्छा थी', ऐसा उद्गार प्रकट करके अपनी सफाई दे रहा है। हम अपनी भूल स्वीकार करनेके पश्चात् ही 'हरिकी इच्छा' की बात कर सकते हैं। अन्य प्रकारसे 'हरि- इच्छा' की बात करना मुझे अज्ञानसूचक प्रतीत होता है । [ हमें मनन करना चाहिए कि] यह 'हरि-इच्छा' क्या वस्तु है ।

काशीको यहाँ बुला लेनेमें तुम्हें आगा-पीछा नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसके बिना दूसरे आयेंगे ही नहीं और आना भी चाहें तो उनके सामने कठिनाइयाँ उप- स्थित होंगी। तुम इस बातपर गौर करने की कोशिश करना कि काशीसे कोई वास्तविक सहायता मिल सकेगी या नहीं।

मुझे ऐसा लगा करता है कि तमिलका अध्ययन तुम्हींसे बन पड़ेगा, और किसीसे नहीं । इसलिए तुम उसके अध्ययनमें लगे ही रहना ।

यहाँ बहुत बच्चे हो गये हैं; उनमें से बहुतेरे तो बिना माँके हैं। यह प्रयोग कठिन भयावह भी है। रामा' और देवाका क्या होगा, इसका कुछ निश्चय नहीं ।

ठक्करने आकर अपना काम सँभाल लिया है, इसलिए मेरा खयाल है कि तुम्हारा बोझ कुछ हलका हो जायेगा । उससे भी कहना कि टॉल्स्टॉय की पुस्तक पढ़े ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती (सी० डब्ल्यू० ४९४२) से ।

सौजन्य : राधावेन चौधरी ।

३१५. पत्र : मगनलाल गांधीको

टॉल्स्टॉय
[ नवम्बर १६, १९१० के बाद ]

चि० छगनलाल,

साथमें 'वन्दे मातरम्' की स्वरलिपि है। बने तो सीख लेना । स्वामीजीके सम्बन्धमें, 'नेटाल ऐडवर्टाइज़र के आधारपर लिखना मरे हुएको मारनेके समान है। लिखनेका अवसर तब था, जब उनका पत्र ['नेटाल ] विटनेस' में प्रकाशित हुआ था। यह अवसर तो यों ही निकल गया। अगर लिखनेसे उनका १. गांधीजीके तृतीय पुत्र : रामदास । २. गांधीजीके चतुर्थ पुत्र : देवदास । ३. पत्रमें शेलतके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र नवम्बर १६, १९१० को उनकी रिहाई के बाद लिखा गया था।