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पत्र : मगनलाल गांधीको

अथवा किसीका भला हो सके तभी हम लिखें। लेकिन ऐसा अवसर अब नहीं रहा । आया था, पर निकल गया। लोगोंने यदि धीरज रखी तो यह मनुष्य तो अपने ही हाथों मर मिटेगा । उसके काम ही उलटे हैं। मौलवीके विरुद्ध हमने क्यों नहीं लिखा ? ऐसे तो अनेक उदाहरण हैं । तुम्हें कोई कुछ सुनाये तो उसके साथ धीरजसे बात करना। इस्माइल गोराके पीछे पड़ना । न दें तो फिर मुझे सूचित करना। मैं पत्र लिखूँगा । इसपर भी न दें तो विज्ञापन बन्द कर देना । तुम्हारा पत्र पानेपर मैं लिखूँगा । वह व्यक्ति अव्यवस्थित है और उसके मनमें तनिक भी सन्तुलन नहीं है, यह हम जानते हैं ।

{Gap}}'रिलेशन ऑफ़ द सेक्सेज़ "[१] नामकी अमूल्य पुस्तक भेज रहा हूँ । हिन्दू शास्त्र जाननेवालोंके लिए उसमें एक भी विचार नया नहीं है । तुम इसे तत्काल पढ़ डालना । और मणिलालको भी समझाना | बादमें श्री वेस्टको दे देना ।

शेलतके कथनसे पता चलता है कि इस बार हरिलालने जेलमें कमाल किया है । उपवास उसने पहले अकेले ही शुरू किया और बादमें अन्य लोगोंने भी किया । ज्यों ही घी मिलने लगा त्यों ही वह स्वेच्छासे दूसरी जेलमें चला गया। शेलत उसकी बहुत प्रशंसा करते हैं, और प्रागजी देसाई भी । वह तो मुझसे भी बढ़ गया जान पड़ता है। होना भी यही चाहिए ।

कुमारस्वामीकी पुस्तक,[२] श्री पोलककी किताबोंमें जो रुस्तमजी सेठके यहाँ हैं, पड़ी है। उसे निकालकर फुरसत मिलनेपर पढ़ जाना । पढ़ने योग्य है । उसमें गायन और वादनके विषय में जो कुछ लिखा है वह ठीक ही जान पड़ता है । दूसरी बातें भी पढ़ने लायक हैं।

पुरुषोत्तमदास भी हड़तालमें शामिल था । वह पहली ही जेल यात्रामें खासी झपेट में आ गया ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती (सी० डब्ल्यू० ४९४३) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।


 
  1. लिओ टॉल्स्टॉय द्वारा रचित ।
  2. डॉ० आनन्द के० कुमारस्वामी (१८७७-१९४७), एक प्रमुख कला समीक्षक तथा भारतीय विद्या विशेषश; भारतीय कलाके इतिहासकार; भारतीय राष्ट्रीयता, शिक्षा, हिन्दूधर्म, बौद्धधर्म इत्यादिके सम्बन्धमें कई पुस्तकोंके लेखक । यहाँ उनकी जिस पुस्तकका उल्लेख है वह शायद ऐसेज़ इन नेशनल आइडियलिज्म है ।