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३१६. मगनलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश'
टॉल्स्टॉय फार्म
[ नवम्बर १६, १९१० के बाद ]
पुस्तकालयके लिए है। श्री वेस्टको दिखाना । उसमें पहले पृष्ठपर कैदियोंके सम्बन्धमें जो कविता है उसे उतार लेना और 'इंडियन ओपिनियन' में सुविधा होनेपर प्रकाशित करनेके लिए कहना । दूसरी [ पुस्तिका ] सभ्यतापर लिखी हुई एक छोटी-सी पुस्तिका है। उसे पढ़ जाना और श्री वेस्टसे कहना कि उसमें से भी कुछ ले लें । वह 'गुलीवर्स ट्रैवेल्स' के आधारपर है। छगनलालने भेजी है। स्त्री-पुरुषोंके सम्बन्धपर टॉल्स्टॉयकी पुस्तक कल भेज चुका हूँ ।
हैजेके सम्बन्धमें तुमने वीरजी मेहताका जो उदाहरण दिया है, वह ठीक है । जहाँ बाह्य स्वच्छताका ध्यान रखा जाता हो वहाँ यह रोग न होता हो, ऐसी तो कोई बात नहीं है । केवल यही देखनेमें आता है कि जहाँ अपने शरीरकी और आस-पासकी स्वच्छता रखी जाती हो, वहाँ यह रोग कम फैलता है। लेकिन यह निश्चित है कि जहाँ पूर्ण रूपसे आन्तरिक शुचिता हो, वहाँ हैजा या दूसरे रोग नहीं फटकते। उस शुचिताको तो विरला ही पुरुष महा प्रयत्न करनेपर भी शायद ही पहुँचता है। वहाँ पहुँचनेके लिए हमें...|
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९४४) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।
,३१७. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
[ नवम्बर १७, १९१० के पूर्व ]
श्रीमती रम्भाबाई सोढा
इस मुकदमेकी सुनवाई शायद २२ तारीखको होगी; इसमें गवाही देनेके लिए श्री सोढाके नाम समन्स जारी किये गये हैं। श्रीमती सोढाके उपनिवेशमें अनुचित रूपसे प्रविष्ट होने का प्रश्न न उठे और जनरल स्मट्सको कोई बहाना न मिले, इसलिए श्री काछलियाने उनको तार [३]दिया कि रम्भाबाई लड़ाई समाप्त होते ही