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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

३८५ लौट जायेंगी । उनका उत्तर आया है कि रम्भाबाई निषिद्ध प्रवासी भारतीयकी पत्नी हैं, इसलिए वे प्रवेश नहीं कर सकतीं। जवाब में श्री काछलियाने तार[१] दिया कि लड़ाई में स्त्रियोंको सम्मिलित करनेका इरादा नहीं है, इसलिए हम प्रवासी अधिनियमके अनुसार मर्यादित अवधिका अनुमतिपत्र लेनेके लिए तैयार हैं । स्मट्स साहबने इसका उत्तर भी नकारात्मक दिया है । रम्भाबाईने जेल जानेका निश्चय किया है और उनके पीछे बहुत- सी तमिल स्त्रियाँ भी जानेके लिए तैयार हो रही हैं। अब देखना है क्या होता है । इस सम्बन्धमें श्री गांधीने अखबारोंको पत्र लिखा है ।

समझौतेकी कोशिश

[२]

अफवाह है कि कुछ दिनोंमें समझौता हो जायेगा। सोमवारको 'स्टार' में एक लम्बा लेख छपा है । इसमें भी कहा गया है कि समझौता होनेका अवसर आ पहुँचा है। समझौतेमें भारतीय नेताओंके बुलाये जानेकी सम्भावना तो कम ही है । इसलिए ऐसा जान पड़ता है कि जो होना होगा ब्रिटिश सरकारके साथ सीधे परामर्शसे ही होगा ।

समझौतेका स्वरूप क्या होगा ?

इस प्रश्नपर कुछ विचार कर लेना आवश्यक है । जान पड़ता है कि यहाँ भारतीयोंकी जो माँग है वह मान ली जायेगी, अर्थात् कानूनमें तो आने-जानेके अधिकार जैसे भारतीयोंके हैं, वैसे ही गोरोंके होंगे । अर्थात् प्रवेश दोनों यूरोपीय भाषाकी परीक्षा देकर ही कर सकेंगे। किन्तु साथ ही परीक्षामें उत्तीर्ण हो जानेपर भी विभिन्न जातियोंके कितने लोग आ सकते हैं, इसका निर्णय गवर्नर जनरलकी इच्छापर निर्भर रहेगा । १९०७ का काला कानून रद कर दिया जायेगा। इतना हो जानेसे तो भारतीयोंकी प्रतिज्ञाकी रक्षा हो जायेगी और उनका मान रह जायेगा । परन्तु बात इतनी ही नहीं है। इसमें एक गाँठ यह जान पड़ती है कि सरकार ट्रान्सवाल जैसा ही केप और नेटालमें करना चाहेगी; अर्थात् वह नेटाल और केपमें भी शिक्षाकी परीक्षाको अधिक कठोर बनायेगी और सभी भारतीयोंका पंजीयन करना चाहेगी। मुझे तो लगता है कि नेटाल और केपके भारतीयोंका इन दोनोंमें से एक भी बात मानना उचित न होगा । नेटाल और केपमें ट्रान्सवालकी तरह पंजीयनकी प्रथा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वहाँ वैसा करनेकी आवश्यकता नहीं है; और शिक्षा-सम्बन्धी [ परीक्षाके] नियमको अधिक कठोर बनाना तो स्पष्ट ही बुरा माना जायेगा ।

फिर बच्चों का क्या हो ?

ट्रान्सवालमें बच्चोंपर धावा हो रहा है; इस सम्बन्धमें ट्रान्सवालको सावधान रहना चाहिए। बच्चोंका सवाल ऐसा है कि न्याय प्राप्त न हो तो सत्याग्रह किया जा सकता है, किया जाना चाहिए ।

  1. देखिए "तार : गृह मन्त्रीको", पृष्ठ ३७६ ।
  2. देखिए “पत्र : अखबारोंको", पृ४ ३७८-८० ।