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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी३८७

न्यायाधीश ब्रिस्टो

[ आपका ] मत यह है कि १९०७ के अधिनियमके अनुसार श्री छोटाभाईके पुत्रको [ प्रवेशका ] अधिकार मिलना सम्भव था, किन्तु १९०८ के अधिनियम के अनुसार यह सम्भावना समाप्त हो गई । वे यह भी मानते हैं कि दोनों अधिनियम बुरे हैं । उनका अर्थ करना कठिन है। लड़कोंको निकाल बाहर करना स्पष्ट अन्याय है और ऐसा कानून बनाना [ उनके कथनानुसार ] कदापि उचित नहीं था । उन्होंने कहा है कि मैंने अपना निर्णय तो दिया है, फिर भी मुझे उसके ठीक होनेका निश्चय निर्णय मैंने दिया है वह दुःखके साथ दिया है ।

न्यायाधीश मेसन

नहीं है । जो १९०७ के अधि- १९०८ के अधि- न्यायाधीश मेसनका खयाल है कि पंजीयक छोटाभाईके पुत्रको नियमके अन्तर्गत रियायतके रूपमें पंजीयन प्रमाणपत्र दे सकता है । नियममें उस अधिकार [ रियायतके रूपमें प्रमाणपत्र पानेके अधिकार ] की रक्षा नहीं की गई है, किन्तु १९०७ का अधिनियम उस सम्बन्धमें [ १९०८ के अधिनियम द्वारा ] रद नहीं होता । इसलिए पंजीयकको उस बालकके मामलेपर पुनर्विचार करना चाहिए । इसके अतिरिक्त न्यायाधीशका यह भी कहना है कि दोनों कानूनोंका अर्थ करनेमें बहुत उलझन महसूस होती है और यह स्थिति तो सर्वथा असह्य है कि ऐसे बालकोंको सोलह वर्षका होते ही निष्कासित कर दिया जाये ।

क्या समझौता निकट है ?

श्री पोलकने भारतमें जो भाषण दिये उनके सम्बन्धमें लॉर्ड क्रू से जनरल स्मट्सने कहा था कि श्री पोलकने भारतमें गलत बातें कही हैं। इसपर श्री पोलकने जनरल स्मट्ससे पूछा कि उन्होंने किस जगह भूल की है । जनरल स्मट्सने इसका उत्तर दिया है । उसमें उन्होंने कहा है कि यद्यपि वे श्री पोलककी भूल बता सकते हैं; परन्तु अब इस प्रश्नकी चर्चा करनेसे कुछ लाभ न होगा । [ और यह कि ] उनका इरादा एशियाइयों और सरकारके बीच कड़वाहट बढ़ानेका नहीं है और वे मानते हैं कि कुछ समयमें समझौता हो जायेगा ।

स्थानीय पत्रोंमें एक तार प्रकाशित हुआ है। उससे भी इस बातको बल मिलता है। इसमें बताया गया है कि सर फ्रांसिस होपवुडने संघ-सरकारसे बातचीत की है और सब बातें तय हो जायेंगी । १९०७ का अधिनियम रद कर दिया जायेगा और प्रवासी अधिनियम में शिक्षा सम्बन्धी भेद रहेगा; रंग और जाति-सम्बन्धी भेद हटा दिया जायेगा ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९१०

१. पोलकका अक्तूबर २४, १९१० का यह पत्र जनरल स्मट्सके १२-११-१९१० के उत्तर के साथ इंडियन ओपिनियन में १९-११-१९१० को प्रकाशित हुआ था । २. १४-११-९९१० को भेजी गई रायटर की रिपोर्ट; इसे १९-११-१९१० के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था ।