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३१८. पत्र : एशियाई सम्मेलनके सदस्योंको [१]

जोहानिसबर्ग

प्रिय महोदय,

मैं आपको एशियाई सम्मेलनके एक सदस्यके रूपमें सम्बोधित करनेकी स्वतन्त्रता ले रहा हूँ। सम्मेलन अगस्त १९०८ में हुआ था और आपने उसमें भाग लिया था।

आपने समाचारपत्रोंमें देखा होगा कि एशियाई विभागने १९०८ के एशियाई अधिनियमकी - जो अंशत: उपर्युक्त सम्मेलनका परिणाम था – व्याख्या यह की है। कि पंजीयित एशियाइयोंके जिन नाबालिग पुत्रोंकी पैदाइश ट्रान्सवालकी न हो या जो लोग यह अधिनियम लागू होनेके समय ट्रान्सवालमें न रहते रहे हों, उनको १६ वर्षका होते ही आवश्यक रूपसे निष्कासित किया जा सकता है, भले ही वे अधिनियम के अनुसार पंजीयन करानेके लिए प्रार्थनापत्र देने को तैयार हों और भले ही उनके पिताओंके पंजीयन प्रमाणपत्रों में ऐसे नाबालिगोंके नाम दर्ज हों ।

अब इस सम्बन्धमें एक मामला सामने आया है। यह मामला एक प्रमुख भारतीय व्यापारी ए० ई० छोटाभाईके पुत्रका है। उसका नाम पिताके पंजीयन- प्रमाणपत्र पर दर्ज है। उसने १६ वर्ष पूरे कर चुकनेपर, अधिनियमके अनुसार, पंजीयन के लिए अर्जी दी । वह जब नाबालिग था तभी अपने पिताके साथ, अधिकारियोंकी पूरी जानकारीमें और उनकी सहमतिसे, उपनिवेशमें प्रविष्ट हुआ था, क्योंकि प्रवासी प्रति- बन्धक अधिनियमके अन्तर्गत उसे प्रवेश करनेका कानूनी हक था। पंजीयकने उसकी अर्जी नामंजूर कर दी। उसने मजिस्ट्रेटसे अपील की। मस्जिट्रेटने पंजीयकके ही निर्णयको बहाल रखते हुए उसे ट्रान्सवालसे तुरन्त निकाल देनेका आदेश दिया। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में अपील विचाराधीन होनेके कारण तबतक के लिए वह आदेश निलम्बित कर दिया गया। जस्टिस श्री वेसेल्सके इजलासमें मुकदमा पेश हुआ। उन्होंने सरकारके कदमको 'अमानुषिक' बतलाया और कहा कि " जब लोगोंको इसका पता चलेगा तब समूचे सभ्य संसारमें इसे लेकर चीख-पुकार मच जायेगी"; लेकिन विद्वान न्यायाधीशने निर्णय दिया कि अधिनियममें ऐसे बालकोंके पंजीयनकी व्यवस्था नहीं है; और इसी- लिए उन्होंने अनिच्छापूर्वक अर्जी खारिज कर दी है। तब मामला सर्वोच्च न्यायालयकी पूर्ण-पीठ (फुलबेंच) के सामने ले जाया गया, जिसने बहुमतसे जस्टिस श्री वेसेल्सके निर्णयकी ही ताईद की ।[२] अब अपील अदालत (अपीलेट कोर्ट) में अपील करनेका नोटिस दिया जा चुका है; इसलिए मामला अभी अदालतके विचाराधीन है।

  1. यह पत्र अगले शीर्षकके साथ, १९-११-१९११ के स्टारमें “ छोटाभाईका मुकदमा ” शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक ।