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पत्र : एशियाई सम्मेलनके सदस्योंको

परन्तु इस पूरी कार्रवाईके कुछ उल्लेखनीय परिणाम निकले हैं जिनकी ओर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ । न्यायाधीशोंने निर्णय दिया है कि बादवाले अधिनियमसे १९०७ का अधिनियम एक तरहसे रद हो जाता है, इसलिए यद्यपि १९०७ के अधिनियम के अन्तर्गत श्री छोटाभाईके पुत्रकी स्थितिके एशियाई नाबालिगोंको संरक्षण मिल सकता था, पर १९०८ के अधिनियममें यह संरक्षण समाप्त कर दिया गया है । जस्टिस श्री मैसनने दूसरे न्यायाधीशोंसे मतभेद प्रकट करते हुए अर्जीके पक्षमें निर्णय दिया है, लेकिन इतना उन्होंने भी कहा है कि यद्यपि बालकको १९०८ के अधिनियम के अन्तर्गत संरक्षण नहीं दिया जा सकता तथापि १९०७ के अधिनियमकी नाबालिगोंसे सम्बन्धित धाराएँ रद नहीं हुई हैं। इसके अलावा, जस्टिस श्री मैसन और जस्टिस श्री ब्रिस्टोने सरकार द्वारा उठाये गये कदम, और अधिनियमोंकी भी, कठोर शब्दोंमें भर्त्सना की है ।

निःसन्देह आपको उस काफी दिलचस्प बहसका स्मरण होगा जो सम्मेलनके कई सदस्यों और श्री क्विन तथा मेरे बीच १९०७ के अधिनियम २ को रद करनेके प्रस्तावके बारेमें हुई थी। परन्तु जनरल स्मट्सने उसे रद करनेके प्रश्नपर विचार तक करनेसे इनकार कर दिया। आपको उस बहसका भी स्मरण होगा जो नाबालिगोंके सम्बन्धमें इस विषयपर हुई थी कि उनकी पैदाइश कहींकी भी हो, उनके नाम उनके पिताओंके पंजीयन प्रमाणपत्रों में दर्ज कर देनेपर उन्हें संरक्षण मिल जायेगा । १९०७ के अधिनियम २ के अन्तर्गत पहलेसे मिले हुए ठोस अधिकारोंको छोड़नेका तो कभी कोई सवाल ही नहीं था ।

इसके आगे मुझे यह भी कहनेकी अनुमति दीजिए कि : (१) जनरल स्मट्सने विधानसभा में नया विधेयक पेश करते समय यह कभी नहीं कहा था कि उससे किसी भी वर्ग के नाबालिगका उपनिवेशमें निवासका अधिकार खत्म हो जायेगा; (२) श्री डी'विलियर्सने महान्यायवादी (अटर्नी जनरल) की हैसियतसे गवर्नरको भेजी गई अपनी टिप्पणीमें यह भी कहा था कि अन्य बातोंके अलावा नाबालिगोंके पंजीयनसे सम्बन्धित एशियाइयोंकी माँग मान ली गई है और यह भी कि दोनों अधिनियम एक साथ चलेंगे; (३) ब्रिटिश साम्राज्यके किसी भी भाग में वैध एशियाई निवासियोंके बच्चोंको किसी भी आयुमें अपने माता-पितासे अलग नहीं किया जाता, फिर १६ वर्षकी नाजुक उम्र में अलग करना तो दूरकी बात हुई । यहाँ मैं यह कहनेकी अनुमति चाहता हूँ कि सम्मेलनका एक सदस्य होनेके नाते आपका इस सवालसे सीधा सम्बन्ध है; मेरी तरह आपकी निगाहमें भी यह बात आ जायेगी कि हमारे न्यायालयोंका यह निर्णय सर्वथा अप्रत्याशित है और इसके जरिये एशियाई नाबालिगोंका अधिकार छीना जा रहा है ।

आशा है मेरा यह कथन ठीक माना जायेगा कि सम्मेलन द्वारा अंगीकृत सिद्धान्तोंकी रक्षाका प्रश्न सम्मेलनके सदस्योंकी प्रतिष्ठाका प्रश्न है, और इसीलिए मुझे भरोसा है कि आप यदि अधिक नहीं, तो सार्वजनिक रूपसे यह घोषणा अवश्य कर देंगे कि आपने इस पत्र में उल्लिखित वर्गके एशियाई नाबालिगोंको उनके अधिकारोंसे वंचित किये जानेकी बात कभी नहीं सोची थी ।