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३२०. पत्र : ड्यूक ऑफ़ कनॉटके निजी सचिवको

जोहानिसबर्ग
[ नवम्बर १८, १९१० के बाद ]

महोदय
हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके भवनमें इसी माहकी १८ तारीखको ब्रिटिश भार- तीय संघकी समितिकी एक विशेष बैठक हुई थी । उसमें निम्नलिखित प्रस्ताव सर्व- सम्मतिसे पास हुआ था; मैं उसे आपकी सेवामें भेज रहा हूँ :
ब्रिटिश भारतीय संघकी समितिकी यह बैठक अत्यन्त खेदके साथ इस निष्कर्षपर पहुँची है कि निर्वासित नारायणस्वामीकी मृत्यु, वर्ग-विशषके नाबालिग बच्चोंके विरुद्ध अत्याचारपूर्ण कानूनी कार्रवाइयाँ, श्रीमती सोढापर निकट भविष्य में चलाया जानेवाला मुकदमा, और भारतीय समाजकी उन माँगोंको, जिन्हें सब न्यायसम्मत और उचित मानते हैं, संघ- राज्य द्वारा अस्वीकार किये जानेके कारण उत्पन्न सत्याग्रहियों की सतत कष्टपूर्ण परिस्थिति • इन सब बातोंको ध्यान में रखते हुए समाजके लिए यह सम्भव नहीं है कि वह उस सार्वजनिक स्वागत समारोहमें, जिसमें महाविभव ड्यूक ऑफ कनॉटको मानपत्र दिया जानेवाला है, भाग ले और इस प्रकार संघ - राज्यके उद्घाटनके अवसरपर सार्वजनिक रूपसे मनाये जानेवाले उत्सवको अपना उत्सव माने । संघ-राज्यके निर्माणसे [ उसके ] एशियाई ब्रिटिश प्रजाजनोंकी स्थिति और भी अधिक विषम हो गई है, और वे अपने भविष्यके विषयमें अधिक चिन्तित हो गये हैं । समितिकी यह बैठक इस प्रस्ताव द्वारा अध्यक्षको अधिकार देती है कि वह महाविभवके नाम एक आदरपूर्ण पत्र लिखे, जिसमें सम्राट्के प्रति इस समाजकी निष्ठा व्यक्त की जाये, और जिसमें सम्राट्के प्रतिनिधिके रूपमें व्यक्तिगत रूपसे उनका स्वागत किया जाये ।
मेरा संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है, उसका यह दुर्भाग्य है कि उपर्युक्त कारणोंसे उसके प्रतिनिधि महाविभवके ट्रान्सवाल आगमनके अवसरपर स्वयं सादर उपस्थित होकर उनका स्वागत करने और राजसिंहासनके प्रति समाजकी भक्ति प्रदर्शित करनेसे वंचित है ।

१. इस पत्रका मसविदा सम्भवत: गांधीजीने तैयार किया था। इसपर ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष अ० मु० काछलिया के हस्ताक्षर हैं । पत्रका गुजराती अनुवाद इंडियन ओपिनियनके ३-१२-१९१० के अंकमें छपा था । इसका पहला अनुच्छेद उसी गुजराती अनुवाद से, प्रस्ताव २६-११-१९१० के इंडियन ओपिनियनसे और अन्तके दो अनुच्छेद फिर इंडियन ओपिनियनके ३-१२-१९१० के अंकके गुजराती अनुवादसे लिए गये हैं।