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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए सार्वजनिक रूपसे संघ द्वारा मानपत्र पेश न किये जा सकनेकी स्थितिमें मैं विनयपूर्वक इस पत्रके द्वारा महाविभवका स्वागत करता हूँ और उनसे प्रार्थना करता हूँ कि वे हमारे समाजकी भक्तिकी यह अभिव्यक्ति महामहिम सम्राट् और सम्राज्ञी तक पहुँचा दें।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९१० और ३-१२-१९१०

३२१. पत्र : ड्यूक ऑफ़ कनॉटके निजी सचिवको

[ नवम्बर १८, १९१० के बाद ]

मैं हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी [ कार्यकारिणी ] समितिकी ओरसे आपसे प्रार्थना करता हूँ कि ड्यूक महोदयके ट्रान्सवाल पधारनेके अवसरपर आप उनकी सेवामें हमारा मानपूर्ण अभिनन्दन पहुँचा दें और उनसे हमारी ओरसे यह भी कहें कि वे सम्राट्को हमारी अंजुमनके सदस्योंकी राजभक्तिसे परिचित करानेकी कृपा करें।

हमें इस बातका बहुत खेद है कि ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षके पत्रमें बतलाये हुए कारणोंसे, जिनसे हमारी समिति पूर्णतया सहमत है, हम लोग इस सप्ताह होने- वाले उत्सवोंमें सार्वजनिक रूपसे भाग न ले सकेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-१२-१९१०

३२२. समझौता ?

ऐसा लगता है कि शायद ट्रान्सवालके भारतीयोंकी माँगें स्वीकृत हो जायेंगी । हमारे द्वारा अन्यत्र प्रकाशित 'टाइम्स' के तार और श्री पोलकके नाम जनरल स्मट्सके पत्रसे यही बात प्रकट होती है। इसके सिवा, यह भी जान पड़ता है कि एशियाइयोंके लिए अपमानजनक कानून अब बनाये ही नहीं जायेंगे। यदि हमारा यह खयाल सही सिद्ध हो तो माना जायेगा कि सत्याग्रहियोंकी पूरी जीत हुई। इस जीतका अर्थ समझना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है । लड़नेवालोंके व्यक्तिगत स्वार्थोकी रक्षा इसका उद्देश्य नहीं है। लड़ाईका सच्चा उद्देश्य तो विचारवान् ही समझ सकेंगे। एशियाइयोंपर १. सम्भवतः इस पत्रका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था और इसे हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके अध्यक्ष इमाम अब्दुल कादिर बावजीरके हस्ताक्षर से भेजा गया था । अंग्रेजी पाठ उपलब्ध नहीं है । २. देखिए पिछला शीर्षक । ३ और ४. देखिए " जोहानिसबर्गकी चिट्टी", पृष्ठ ३८४-८७ ।