पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/४३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

________________

३९३
रम्भाबाईका मामला

एशियाइयोंके नाते कानूनी रोक नहीं होगी । फिर भी हम तो जिस स्थितिमें थे, उस स्थितिमें रहेंगे । ऐसा भी नहीं है कि सैकड़ों भारतीय प्रवेश कर सकेंगे । अनुमतिपत्रों और प्रमाणपत्रोंका कष्ट भी बना रहेगा । इन कष्टोंका दूर होना स्वयं हमपर निर्भर होगा । हम लोभ न करें, सच्चे रहें, और सबके तथा अपने सम्मानकी रक्षा करते हुए ढंगसे काम करें तो उन कष्टोंको दूर किया जा सकेगा । समान-कानून-रूपी वृक्ष हमें [ अवश्य ] प्राप्त होगा; उसकी छायामें बैठना या न बैठना तो अपनी इच्छापर निर्भर होगा ।

उक्त शुभ समाचारके प्राप्त होनेपर भी भारतीयोंको कोई आशा नहीं बाँधनी है । सब लक्षण ठीक हैं सही, किन्तु बात अब भी बिगड़ सकती है । तारसे प्राप्त अधिकृत समाचार प्रकाशित होनेपर भी विधेयक दूसरे ही प्रकारका हो सकता है। हमें तो जैसा दिखाई देता है, वैसा बताते हैं और यह प्रयत्न करते हैं कि समझौता हो जाये तो लोग उसका सही अर्थ समझ सकें ।

इसके सिवा पाठकोंसे हम यह तो कह ही चुके हैं कि जिस कानूनके बननेकी सम्भावना है उसमें केप और नेटालमें स्थिति क्या होगी, इसपर विचार किया जाना चाहिए ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९१०

३२३. रम्भाबाईका मामला

रामचन्द्रजीकी ओरसे अंगदने रावणसे समझौतेकी बहुत बातचीत की, किन्तु रावण अपने मदमें मत्त रहा और उसने एक न सुनी। उसने सीताजीको कैदसे मुक्त नहीं किया। अन्तमें उसे मरना पड़ा। जनरल स्मट्सका भी यही हुआ है । रम्भाबाईकी ओरसे श्री काछलियाने जनरल स्मट्ससे प्रार्थना की और अनुरोध किया कि उनपर चलाया जानेवाला मामला वापस ले लिया जाये । किन्तु जनरल स्मट्सने अपने मदमें उनकी इस प्रार्थनाका उद्धत होकर अनुचित जवाब दिया है। रामचन्द्रजीने रावणको धराशायी कर दिया और सीताजीको छुड़ाया। श्री काछलियाके समझौते के प्रयत्नोंका श्री स्मट्सने तिरस्कार किया है । अब भारतीय समाज क्या करेगा ? जनरल स्मट्सको धराशायी करनेका भारतीय समाजके पास एक ही सच्चा और सीधा रास्ता है. - समाज उन्हें दिखा दे कि वे रम्भाबाईपर जो अन्याय करना चाहते हैं, समाज उसे सहनेके लिए तैयार नहीं है । और इसका एक ही तरीका है। दूसरी भारतीय स्त्रियाँ रम्भाबाईके उदाहरणका अनुकरण करें और जेल जानेका रास्ता अख्तियार करें। और जब स्त्रियाँ १. देखिए " जोहानिसबर्ग की चिट्ठी ", पृष्ठ ३८४-८७ । २. देखिए, “तार : गृह-मन्त्रीको ”, पृष्ठ ३७५ और पृष्ठ ३७६ ।