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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जेल जायें तब यह तो सवाल ही नहीं उठता कि पुरुष क्या करें। जिनमें पुरुषत्व होगा वे पुरुष ट्रान्सवालकी जेल भरनेमें जरा भी पीछे नहीं रहेंगे। सरकार स्त्रियोंपर हाथ उठाये और पुरुष देखते रहें, यह तो सोचा ही नहीं जा सकता । पैसा साथ नहीं जायेगा । पैसा आज है, कल नहीं । किन्तु रम्भाबाईके जेल जानेपर यदि हमने अपना तेज प्रकट नहीं किया तो हमारी लाज तो जायेगी ही, हमारे कारण भारतकी भी नाक कटेगी। हम आशा करते हैं कि श्रीमती सोढाके जेल जानेपर हरएक प्रान्तमें सभाएँ होंगी, प्रस्ताव पास किये जायेंगे, सरकारको भेजे जायेंगे और प्रत्येक प्रान्तमें से शिक्षित अथवा वे भारतीय, जो ट्रान्सवालमें पहले आ चुके हैं, तुरन्त यहाँ दाखिल होकर जेलोंको भर देंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९१०

३२४. सन्देश : ब्रिटिश भारतीय संघकी संभाको

जोहानिसबर्ग
नवम्बर १९, १९१०

सरकार हमारे सत्याग्रह-संघर्षका समुचित निपटारा नहीं सत्याग्रहियोंसे सर्वथा अन्यायपूर्ण व्यवहार करके उन्हें परेशान घी-जैसी वाजिब चीजके लिए निराहार रह जाना पड़ता है। बच्चोंके १६ वर्षके होते ही उनका पंजीयनका अधिकार उड़ा दिया जाता है; अब तो स्त्रियोंके ऊपर भी हाथ उठाया जाने लगा है। - उदाहरणके लिए, सौ० रम्भाबाई सोढा, जिनके मामलेकी सुनवाई अगले हफ्ते होनेवाली है। इन और ऐसे ही दूसरे कारणोंसे हम ड्यूक ऑफ कनॉटके जोहानिसबर्ग में आगमनके अवसरपर मनाई जानेवाली गोरोंकी खुशियोंमें भाग नहीं ले सकते । हमारी लड़ाई तो हम तभी बन्द कर सकते हैं जब हमारी माँगें पूरी हो जायें और नया प्रवासी कानून हमारे कष्टोंको दूर करे। संघ-सरकार बन जानेके कारण यदि नया कानून सारे उपनिवेशोंमें लागू हो और उससे दूसरे उपनिवेशोंके हमारे भाइयोंको हानि पहुँचे तो उन्हें सत्याग्रहका आश्रय लेना पड़ेगा और उसके लिए हमें भरसक त्याग करना पड़ेगा। लेकिन उस कारणसे मौजूदा सत्याग्रह जारी नहीं रखा जा सकता। केपके भारतीय ड्यूकको मानपत्र देनेवाले नहीं थे; किन्तु वह तैयार हो चुका था इसलिए डाकसे भेज दिया गया । और मुझे मालूम है कि नेटालके भारतीय [ मानपत्र ] नहीं दे रहे हैं । हम ऐसी परिस्थितियोंमें खुशियोंमें भाग नहीं ले सकते १. यह सभा १९ नवम्बर, १९१० को ड्यूक ऑफ कनटके आगमनपर उन्हें मानपत्र देनेके सवालपर विचार करनेके लिए हुई थी। गांधीजी बीमार होनेके कारण सभा में उपस्थित नहीं हो सके थे; इसलिए उन्होंने यह लिखित सन्देश भेजा था ।