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३. हिंदी स्वराज्य
प्रस्तावना

इस विषयपर मैंने बीस प्रकरण लिखे हैं। उन्हें पाठकोंके सामने रखनेकी हिम्मत करता हूँ। जब मुझसे रहा नहीं गया तभी मैंने लिखा है। बहुत पढ़ा; बहुत सोच-विचार किया और जब ट्रान्सवालके शिष्टमण्डलमें विलायत गया और वहाँ चार माह तक रहा, उस समय जितने भारतीयोंसे मिलना सम्भव हुआ उनसे इस विषयपर चर्चा की। हो सका, उतने अंग्रेजोंसे भी मिला। इसके बाद अपने जो विचार मुझे अन्तिम मालूम हुए उन्हें पाठकोंके सामने रखना मुझे अपना कर्तव्य मालूम हुआ। गुजराती 'इंडियन ओपिनियन' के ग्राहक आठ सौके आसपास हैं। और हर ग्राहकपर कमसे-कम दस व्यक्ति इस पत्रको रुचिपूर्वक पढ़ते हैं, ऐसा मेरा अनुभव है। जो लोग गुजराती नहीं जानते वे उसे दूसरोंसे पढ़वाते हैं। इनमें से अनेक भाइयोंने मुझसे भारतकी हालतके विषयमें अनेक प्रश्न पूछे है। ऐसे ही प्रश्न मुझसे विलायतमें भी पूछे गये। इसलिए मुझे लगा कि जो विचार, इस तरह, मैंने व्यक्तिगत बातचीतके प्रसंगमें प्रकट किये हैं उन्हें सार्वजनिक रूपसे कहने में कोई दोष नहीं है।

पुस्तक प्रस्तुत विचार मेरे हैं और मेरे नहीं हैं। वे मेरे हैं क्योंकि मैं उनके अनुसार आचरण करनेकी आशा करता हूँ। वे मानो मेरी आत्मामें बस गये हैं। वे मेरे नहीं हैं; क्योंकि उन्हें मैने ही अपने चिन्तनके द्वारा ढूंढ निकाला हो, सो

१. यह पुस्तक गांधीजीने इंग्लेंडसे लौटते समय किल्डोनन कैसिल' नामक जहाजपर गुजरातीमें लिखी थी और उनके दक्षिण आफ्रिका पहुँचनेपर इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित हुई थी। पहले बारह अध्याय ११-१२-१९०९ के. अंकमें और शेष १८-१२-१९०९ के अंकमें । पुस्तकके रूपमें वह पहली बार जनवरी, १९१० में प्रकाशित हुई थी और भारतमें बम्बई सरकार द्वारा २४ मार्च, १९१० को उसके प्रचारपर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, (देखिए "हमारे प्रकाशन", पृष्ठ २६१)। बम्बई सरकारकी इस कार्रवाईका जवाब गांधीजीने उसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करके दिया। (देखिए हिन्द स्वराज्यके विषय में, पृष्ठ २०३-०५)।

यह हिन्दी अनुवाद 'नवजीवन ट्रस्ट' द्वारा प्रकाशित गुजराती हिन्द स्वराज्य, १९५४ की आवृतिसे किया गया है, अलबत्ता उसे अंशत: इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित पाठसे और अंशत: 'नवजीवन ट्रस्ट' द्वारा ही तादश रूपमें प्रकाशित गांधीजीको हस्तलिखित मूल पुस्तकके पाठसे मिला लिया गया है और इन दो पाठोंमें जहाँ कहीं उल्लेखनीय फर्क नजर आया है उसपर टिप्पणी दी गई है । इस अनुवादको पुस्तकके अंग्रेजी अनुवादसे -'नवजीवन ट्रस्ट' द्वारा सन् १९३९ में प्रकाशित नवीन संशोधित संस्करणके पाठसे भी मिलाया गया है और उनके अर्थ में कहीं उल्लेखनीय अन्तर गोचर हुआ है तो उसपर भी टिप्पणी दी गई है । इस अंग्रेजी अनुवादके विषय में यह ज्ञातव्य है कि यद्यपि वह - मूलत: गांधीजीका किया हुआ है तथापि उसके संशोधनमें कई मित्रोंका हाथ रहा है । पुस्तककी अन्य अंग्रेजी आवृत्तियोंकी जानकारकेि लिए देखिए हमारा अंग्रेजी खण्ड १०, पृष्ठ ६ ।

२.१० जुलाईसे १३ नवम्बर तक ।


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