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पत्र : मगनलाल गांधीको

स्वार्थ-साधन कर डालते हैं । इसके सिवाय जो लोग राजकीय वातावरणमें बढ़े-पले होते हैं, वे शिक्षित न हों, तो भी अनीतिवान बन जाते हैं। यदि हम अपने ही कुटुम्बके विषय में सोचें, तो तुरन्त यह बात दिखाई पड़ जायेगी कि कन्हैयालालको जिन लोगोंके विषय में निराशा हो रही है, भारतीय जनतामें वे समुद्र में केवल बूंदके समान हैं। हमारे कुटुम्बमें जो लोग बड़े-बड़े पदोंपर हैं, उनके दम्भ, रिश्वतखोरी, अनीति आदिका मनमें विचार कर देखो ।

तुम्हारी यह आपत्ति ठीक है कि कुछ कैदियोंके नाम तारीखवार दिये गये हैं। और कुछ नहीं दिये गये। दूसरोंकी तारीख दे सकनेकी सुविधा [ अभी ] मुझे नहीं है, इसलिए इनके नाम अलग कर देना । श्रीमती सोढा, नारायणस्वामी और नागप्पनके नाम रख लेना ।

श्री हॉस्केनका तार आया है । उसमें उन्होंने कहा है कि उन्होंने स्मट्सको बतला दिया है कि जो नया कानून बनेगा, उससे भारतीय समाजको सन्तोष होगा ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल गुजराती पत्रसे । सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।

३३२. पत्र : मगनलाल गांधीको

कार्तिक बदी [ १४, नवम्बर ३०, १९१० ]

चि० मगनलाल,

करामतको तुमने खिलाया-पिलाया है, इसका खर्च मैं तो रुस्तमजी सेठसे लेना उचित मानता हूँ। यह उचित है और ऐसा नहीं लगता कि रुस्तमजी सेठ [ इस खर्चको उठाने में ] आनाकानी करेंगे। तुमने करामतसे यह कहकर कि वह अपना भोजन स्वयं बना लिया करें, ठीक किया है। इसमें मुझे कोई खास बुराई नजर नहीं आती। मुझे तो यह भी लगता है कि तुम अनेक कार्योंमें व्यस्त रहा करते हो इसलिए यह झंझट नहीं पाल सकते। मुझे सन्देह हो रहा है कि करामतने इधर-उधर जाकर कुछ अति- रिक्त भोजन भी किया है। उसे [ कटि ] स्नान लेना चाहिए। मिट्टीकी पट्टीका प्रयोग भी कर देखना चाहिए। चूँकि [ घावमें] मवाद ज्यादा है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि अकेली मिट्टीकी पट्टीसे फोड़ा अच्छा हो सकेगा। मेरे खयालसे तो उसे पूरा लंघन करना चाहिए । पर यह उससे सहन कैसे होगा ? बहुत जरूरत जान पड़े तो केला और २. सन् १९१० में कार्तिक वदी ४ नवम्बर २० को पड़ी थी; परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि ' कार्तिक बदी १४' के स्थानपर ' कार्तिक वदी ४' लिख दिया गया है; क्योंकि पोल्क दिसम्बर १ या २ (१९१०) को केप टाउनके लिए रवाना हुए थे और डोक दक्षिण आफ्रिकामें नवम्बर २२ को आये थे । १०-२६