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पत्र : जी० ए० नटेसनको

यदि कर सको तो 'फैलैसी ऑफ स्पीड' का अनुवाद कर डालो । पुस्तक साधारण है, परन्तु हमारे मतलबकी है । मेरा विचार कुमारस्वामीकी पुस्तकका सारांश प्रकाशित करनेका है। देखूं कर पाता हूँ कि नहीं ।

मोहनदासके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९४७) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।

३३९. पत्र : जी० ए० नटेसनको

टॉल्स्टॉय फार्म
दिसम्बर ९, १९१०

प्रिय श्री नटेसन,

आपको एक विस्तृत पत्र लिखनेका कर्ज मुझपर अब तक बना है । परन्तु भाग-दौड़ इतनी रहती है और संघर्षसे सम्बन्धित कार्योंमें इतना व्यस्त रहना पड़ता है कि शान्तिसे बैठकर आपको लिखनेका समय नहीं निकाल पाता ।

चार सौ पौण्ड भेजनेकी सूचनाके तारके लिए अनेक धन्यवाद । सहायता बड़े मौकेकी रही। वापस आनेवाले निर्वासितोंको जहाजसे उतारनेमें अप्रत्याशित कठिनाइयाँ आईं, जिनके कारण पाँच सौ पौण्ड खर्च हो गये और चालू खर्चके लिए कुछ भी नहीं बचा। इसलिए मुझे रुपये-पैसोंके लिए आपको तार' भेजना पड़ा था। इसी प्रकारका एक तार श्री पेटिटको भी भेजा गया था। जिस दिन आपका तार आया, उसी दिन पच्चीस हजार रुपयेके एक चैकके साथ श्री रतन टाटाका भी एक पत्र मिला था । इसलिए अब पैसोंके बारेमें कोई चिन्ता नहीं रही । मैं श्री टाटाके पत्रकी नकल साथ में भेज रहा हूँ ।

वापस आनेवाले सभी निर्वासित आपकी कृपाकी बड़ी प्रशंसा करते हैं। वे मुझे बतलाते हैं कि आपने उनकी सुख-सुविधाका खयाल रखनेमें कुछ उठा नहीं छोड़ा । आपने उनके लिए जो कुछ किया, उस सबके लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार कीजिये ।

आपने देखा होगा कि निर्वासित भारतीयोंमें से, मेरा मतलब उनके दूसरे जत्थेसे है, एकको भी भारत नहीं लौटना पड़ा। खेदका विषय है कि उन्नीस चीनियोंको लौट जाना पड़ा। परन्तु उसमें एक हद तक चीनी संघका भी दोष था । वह इस अप्रत्याशित घटनाके लिए तैयार नहीं था|

आपने यह भी देखा होगा कि जो लोग यहाँ वापस आये उनमें से प्रत्येक ट्रान्स- वालकी जेलोंमें या तो सजा काट चुका है, या काट रहा है। इनमें वे पाँच शामिल नहीं हैं, जो अभी तक केपमें हैं । किन्तु आशा है कि वे जल्दी ही सीमाका उल्लंघन करेंगे । १ और २. उपलब्ध नहीं हैं ।