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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निर्धन परिवारोंको आर्थिक सहायता दिये जानेके सम्बन्धमें आपकी आशंका स्वाभाविक किन्तु निराधार थी। इससे आपकी उदारता प्रकट होती है। आप जानते हैं कि उन लोगोंके साथ मेरा तार द्वारा सम्पर्क था, इसलिए मैंने अदायगी रुकवा दी थी। चूँकि उनमें से अधिकांश लोग जानते थे कि परिवारोंके लिए सहायता प्राप्त करनेके बारेमें बातचीत चल रही है और चूंकि उनको बतला दिया गया था कि फार्ममें आकर रहनेवाले परिवारोंकी ही सहायता की जा सकेगी, इसलिए मुझे पूरी आशा थी कि वे लोग तारसे अपने परिवारोंको फार्मपर भेजनेकी सहर्ष सहमति देंगे। लेकिन मैंने जैसे ही देखा कि वे सहमति नहीं भेज रहे हैं, वैसे ही फार्म जानेके लिए सहमत न होनेवाले परिवारोंको अक्तूबर ७ तक की अदायगी कर दी गई, क्योंकि अन्तिम निर्धारित तिथि यही थी । मैंने डर्बनके लोगोंसे परामर्श कर लिया था, सभी बातें उनके सामने रख दी गई थीं और उनको बतला दिया गया था कि परिवार या तो फार्ममें रहने चले जायें या फिर अपना निर्वाह स्वयं करें। मैंने उनसे यह भी कह दिया था कि जितना पैसा हाथमें है उससे फार्मसे अलग रहनेवाले परिवारोंका खर्च अनिश्चित काल तक नहीं उठाया जा सकेगा। फिर भी पुरुषोंने जेल जाना पसन्द किया। कुछ परिवार तो फार्मंपर आ गये हैं, लेकिन अधिकांश जोहानिसबर्ग में अपने ही पैरोंपर खड़े हैं। फार्मकी दोहरी उपयोगिता है । एक तो यह कि वहाँ परिवारोंका निर्वाह काफी कम खर्चमें हो जाता है और इस प्रकार संघर्षको अनिश्चित काल तक चलानेकी व्यवस्था हो जाती है और हम धोखाधड़ीसे भी बच जाते हैं । हमें यह तो मानना ही पड़ेगा कि संघर्ष में भाग लेनेवालों में से कुछ ऐसे भी हैं जो दूसरोंके अज्ञानका अनुचित लाभ उठानेका लोभ संवरण नहीं कर पाते। फार्म इस प्रकारकी बातोंको नहीं चलने देता। इसलिए जो लोग सचमुच ही अपने पैरोंपर खड़े न हो सकते हों, उनको अनिवार्यतः फार्ममें आ जाना चाहिए। जो ऐसा नहीं करते, उनमें किसी-न- किसी प्रकारसे अपना निर्वाह करनेकी सामर्थ्य है । और यह संघर्ष तो मुख्यतः लोगोंको प्रशिक्षित करनेके लिए है; इसका मंशा संघर्षके जरिए लोगोंको ऊँचा उठाना है। यह तबतक नहीं किया जा सकता जबतक हम समाजसे कूड़ा-करकट साफ न कर दें। फार्ममें रहनेपर हम 'परिवारोंको एक तरहकी शिक्षा भी दे सकते हैं ।

लोगोंको सन्तुष्ट करनेकी हर कोशिश की गई है। इसके बावजूद लोगों में शिकायत बनी ही रहती है। हमें जिस प्रकारके लोगोंके साथ काम करना पड़ता है और हमें जो सामग्री उपलब्ध है, उसे देखते हुए यह अनिवार्य है । आश्चर्य तो इस बातका है कि सही शिकायतोंकी संख्या बहुत ही कम रही है। इसका सारा श्रेय उन लोगोंको है जो इतनी शालीनता और वीरताके साथ बिना कोई शिकायत किये संघर्ष कर रहे हैं। इन भले लोगोंने जो कर दिखाया है वह निःसन्देह हमारे देशके अर्ध-शिक्षित लोगोंके लिए सम्भव नहीं था। अब देखना यह है कि यदि संघर्ष और लम्बा खिंचता है तो इनमें से कितने लोग अन्तिम परीक्षाकी घड़ी तक टिक पाते हैं । १. उपलब्ध नहीं है ।