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३४८. द० आ० ब्रि० भा० समितिके नाम पत्रसे उद्धरण

[ दिसम्बर ३०, १९१० से पूर्व ]

मन्त्रीगण गर्वनर महोदयको आश्वस्त करना चाहते हैं कि ट्रान्सवालकी जेलोंमें तथाकथित भारतीय सत्याग्रहियोंके साथ कोई भेदभाव नहीं बरता जाता ।

श्री गांधी इसका खण्डन करते हैं। वे कहते हैं :

सत्याग्रह आरम्भ होनेसे पहले उन भारतीय कैदियोंको, जो सचमुच भारतीय थे, मैलेकी बाल्टियाँ उठानेके बारेमें उनकी सर्वविदित आपत्तिके कारण सामान्यतः उस कामसे छुटकारा मिल जाता था। मुझे जब जोहानिसबर्ग में १५१ कैदियोंके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, तब वहाँ ऐसा ही होता था और फोक्सरस्टमें भी :- जब वहाँ ७५ से अधिक कैदी थे. - ठीक यही प्रथा थी । सत्याग्रहकी प्रगति बढ़ने के साथ-साथ जेल अधिकारियोंका बर्ताव अधिकाधिक सख्त होता गया है; और जब सभी सत्याग्रहियोंको डीपक्लूफ जेल भेज दिया गया तब तो उसकी पराकाष्ठा ही हो गई । कैदी-बस्ती होने के कारण वहाँके नियम कहीं अधिक सख्त हैं । उदाहरण के लिए फोक्सरस्ट या जोहानिसबर्ग जेलमें हत्याका प्रयत्न करनेके लिए सजा पाये भारतीय कैदी, और वतनी कैदियोंको भी, मुलाकातियोंसे मिलने और पत्र लिखने की सुविधाएँ दी जाती हैं; लेकिन डीपक्लूफ जेलमें नियम द्वारा इसकी मनाही रहती है। वहाँ कोई भी कैदी तीन महीने से पहले मुलाकातियोंसे नहीं मिल सकता, उसे चाहे किसी जघन्य अपराधमें सजा मिली हो, या वह सत्याग्रही हो। और अधिकांश सत्याग्रहियोंको तीन ही महीने की सजा काटनी पड़ती है ।

प्रत्येक व्यक्तिको दक्षिण आफ्रिकाके अन्य किसी भी भाग में अपना अधिवास सिद्ध करनेका पूरा-पूरा अवसर दिया गया था, लेकिन उनमें से कोई भी वैसा नहीं कर सका. । जब भी किसी व्यक्तिके बारेमें यह मालूम हुआ कि वह दक्षिण आफ्रिकाके अन्य किसी भागका निवासी रहा था या वहाँ पैदा हुआ था, तो उसे निर्वासित करके भारत भेजनेके बजाय [दक्षिण आफ्रिकाके] उसी प्रदेशमें वापस भेज दिया गया । ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयने पिछली मईमें लिअंग क्विन तथा एक अन्य बनाम अटर्नी जनरलवाले मुकदमेमें और उसके बाद नायडू बनाम सम्राट्वाले मामलेमें निर्णय दिया था कि यदि कोई एशियाई तलब किये जानेपर अपना पंजीयन प्रमाणपत्र पेश न कर सके तो उसे गिरफ्तार १. गांधीजीने 'ब्लू बुक सी० डी० ५३६३' से उद्धृत करते हुए, दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति, लन्दनको एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने ट्रान्सवाल सरकार द्वारा ट्रान्सवाल्के गवर्नरको भेजी गई रिपोर्ट में कही गई कई गलत और भ्रामक बातोंकी टीका की थी। दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके मन्त्री, एल० डब्ल्यू० रिचने ३० दिसम्बर, १९१० को उपनिवेश कार्यालयके उपनिवेश-उपमन्त्रीके पास उस पत्रके कुछ प्रासंगिक उद्धरण रिपोर्ट के गलत बयानवाले अंशोंके साथ भेजे थे । १०-२७