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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
करके १९०८ के अधिनियम ३६ की धारा ७ के अन्तर्गत मजिस्ट्रेटके सामने पेश किया जा सकता है और यदि वह अपने पंजीयित होनेके बारेमें मजिस्ट्रेटको सन्तुष्ट न कर सके तो मजिस्ट्रेटके सामने सिवा इसके कोई विकल्प नहीं रह जायेगा कि वह उस एशियाईको उपनिवेशसे निकाल देनेका आदेश दे ।

श्री गांधी इस बातका खण्डन करते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें अधिवास या वहाँकी पैदाइश सिद्ध करनेका पूरा-पूरा अवसर दिया गया था। वे कहते हैं:

मैं पहला ही मामला लेता हूँ, सरकारने पृष्ठ १३० पर जिसका हवाला दिया है । वह मामला है मणिकम् पिल्लेका । मैं कह सकता हूँ कि पंजीयन अधिकारी मणिकम् पिल्ले और उनके पिताको भी जानते थे। इतना ही नहीं, मणिकम् पिल्ले धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलता है। उसने घोषित किया था कि वह विद्यार्थी है और उसका दावा था कि उसकी पैदाइश दक्षिण आफ्रिकाकी है और उसे अपनी शैक्षणिक योग्यताके आधारपर नेटालमें प्रवेश करनेका अधिकार है। दूसरा मामला आर० सी० एस० पिल्लेका है। उसने भी बताया था कि उसके पास पर्याप्त शैक्षणिक योग्यता है । इसी प्रकारका मामला टी० ए० एस० आचार्यका है। इसके सम्बन्धमें सरकारी रिपोर्टमें स्वीकार किया गया है कि उसने अपनी शैक्षणिक योग्यताके आधारपर ही दक्षिण आफ्रिकाके किसी भागमें निवास करनेका अधिकार चाहा था। मेरे पास उसके कुछ पत्र हैं जो उसने प्रिटोरियामें अपनी नजरबन्दीके दिनोंमें लिखे थे। उनमें मुझे बतलाया गया है कि उसने अपनी योग्यताके बारेमें सभी अपेक्षित विवरण जुटा दिया था । परन्तु उक्त सभी बन्दियोंको निर्वासित करके भारत भेज दिया गया था । मैं दो पिल्ले भाइयोंको जानता हूँ जिन्होंने मजिस्ट्रेटके सामने पेश होनेसे पहले मुझसे पूछा था कि क्या किम्बर्लेमें उनकी पैदाइशके बावजूद उनको निर्वासित कर दिया जायेगा। मैंने उनसे कहा था कि होना तो नहीं चाहिए, पर फिर भी उनको चाहिए कि वे मजिस्ट्रेटको अपनी 'ओल्ड कॉलोनी' की पैदाइश बतला दें। फिर मैं उनसे तब मिला जब उनको निर्वासनका आदेश दे दिया गया था। दोनोंने मुझे बतलाया कि उन्होंने किम्बर्लेकी अपनी पैदाइशकी विनापर उसका विरोध किया था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। मुझे भली-भाँति याद है कि वे दोनों भाई मुझपर नाराज हुए थे । उनका खयाल था कि मैंने उनको गुमराह कर दिया था। मैं ऐसे अनेक उदाहरण पेश कर सकता हूँ ।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत जिन मुकदमोंका हवाला ऊपर दिया गया है, उनके बारेमें श्री गांधी लिखते हैं:

पता नहीं, जानकर या अनजाने में, लेकिन सरकारने यह कहकर लॉर्ड क्रू को निश्चित गुमराह किया है कि लिअंग क्विन तथा एक अन्य बनाम एटर्नी जनरल और नायडू बनाम सम्राट् दोनों मुकदमें सिद्ध करते हैं कि पंजीयन प्रमाणपत्र पेश न कर पानेवाले एशियाईको गिरफ्तार करके धारा ७ के अनुसार उसका निर्वासन कराने के लिए किसी मजिस्ट्रेटके सामने पेश किया जा सकता है। श्री क्विनवाले मुकदमे में