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रम्भाबाई आर० सोढाका मुकदमा

मुकदमेके प्रारम्भ होते ही श्री क्रेमर (पब्लिक प्रॉसीक्यूटर) ने श्री गांधीको प्रवासी अधिकारी (श्री एम्फीज ) के साथ, अभियुक्ताकी शैक्षणिक परीक्षा लेनेके लिए साथवाले कमरेमें जाने की अनुमति दी ।

गवाहीके भाषान्तरके सम्बन्धमें कुछ कठिनाई उपस्थित हुई । श्री क्रेमरने अपनी बात को समझाते हुए सुझाया कि श्री गांधी दुभाषियेका काम करेंगे । न्यायाधीशने इस सुझावपर एतराज किया।

श्री क्रेमर : बात गवाहीकी नहीं है। कठिनाई [ आरोपके ] आशयकी है; कारण यह है कि अनेक बोलियाँ हैं ।

न्यायाधीश : व्यक्तिगत रूपसे मुझे कोई आपत्ति नहीं है । परन्तु क्या यह सब बिलकुल बाकायदा है ?

श्री गांधी : मुझे कोई आपत्ति नहीं है ।

श्री क्रेमर : और मुझे उससे भी कम ।

अन्ततोगत्वा श्री गांधीसे कहा गया कि अभियुक्ताको आरोपका आशय समझा दिया जाये ।

उत्तरमें अभियुक्ताने कहा कि मैं कोई भी यूरोपीय भाषा नहीं जानती; लेकिन मैं दोषी नहीं हूँ ।

दुभाषियेका शेष काम करनेके लिए श्री प्रागजी के० देसाईको शपथ दिलाई गई ।

श्री केमरने कहा कि इस मामलेपर श्री गांधी और अटर्नी जनरलके कार्यालयके बीच पत्रव्यवहार हो चुका है और मुझे आज्ञा हुई है कि मुकदमा जारी रखा जाये । इसके पश्चात् उन्होंने ट्रान्सवालके प्रवासी अधिकारी तथा खुफिया पुलिसके सदस्य श्री एम्फीजको बुलाया । उसने कहा कि मैंने श्री गांधीके जरिए अभियुक्तासे यह पूछा था कि वह कोई यूरोपीय भाषा बोल या लिख सकती है या नहीं । उसने श्री गांधीके द्वारा नकारात्मक उत्तर दिया। उसने यह भी कहा कि मुझे नहीं मालूम कि मेरे पतिका अधिनियम के अन्तर्गत पंजीयन हुआ था या नहीं ।

श्री गांधीने इस साक्षीका समर्थन करते हुए कहा कि मुझे भी मालूम है कि अभियुक्ता किसी भी यूरोपीय भाषामें बोल या लिख नहीं सकती ।

यहाँ सरकारी पक्षका काम समाप्त हुआ ।

श्री गांधीने अभियुक्ताके पति श्री सोढाको, जोकि फिलहाल फोर्ट जेलमें एक सत्याग्रही कैदी हैं, तलब करवाया । उन्होंने कहा कि मैं पंजीयन अधिनियमके अन्तर्गत तीन माहकी सजा भुगत रहा हूँ । मेरे स्त्री है और तीन बच्चे हैं, मैं दक्षिण आफ्रिकामें लगभग १४ सालसे रह रहा हूँ । मैं ट्रान्सवाल १८९७ में आया था । मैं प्रिटोरियामें व्यापार करता था । परन्तु लड़ाईके दिनोंमें शरणार्थीकी हैसियतसे नेटाल चला गया । लड़ाईके समाप्त हो जानेपर ७ अक्तूबर १९०८ को फोक्सरस्टमें शैक्षणिक परीक्षा पास करनेके बाद ट्रान्सवाल लौट आया। तबसे मैं पंजीयन अधिनियमकी अवज्ञा करनेके कारण बीच-बीचमें जेल जाता रहा। जब मैं जेलमें था तब मेरी दुकानमें चोरी हो गई और मैं अपनी सारी मिल्कियतसे हाथ धो बैठा।