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महत्वपूर्ण निर्णय

" दक्षिण आफ्रिकाकी यह नीति जारी ही रहेगी कि एशियाइयोंको देशमें न आने दिया जाये ।” शिक्षित ब्रिटिश भारतीय एशियाई प्रवासियोंका भारी संख्या में प्रवेश रोकनके लिए उठाये जानेवाले समुचित कदमोंका विरोध नहीं करेंगे । वे केवल इतना चाहते हैं कि कानूनकी नजरमें अवांछनीय बनाकर उनको लांछित करना बन्द किया जाये । जनरल स्मट्सने उसीमें आगे चलकर कहा है कि " उनको आशा है कि शीघ्र ही समस्या हल हो जायेगी, और जो लोग देशमें अधिवासी बन चुके हैं, उनके साथ उचित बरताव होगा । "

[ अंग्रेजीसे ]
इंडिया, २०-१-१९११

३५१. महत्त्वपूर्ण निर्णय

रायटरके कलकत्ता-स्थित संवाददाताने तारसे यह शुभ समाचार भेजा है कि भारत सरकारने इस आशयकी एक विज्ञप्ति अप्रैलमें प्रकाशित करनेका निश्चय किया है। कि आगामी १ जुलाईसे गिरमिटिया भारतीय नेटाल नहीं भेजे जायेंगे । केन्द्रीय विधान- परिषदके गैर-सरकारी सदस्योंके प्रतिनिधि माननीय प्रोफेसर गोखलेने इस निर्णयके लिए भारतीयोंकी ओरसे गहरी कृतज्ञता प्रकट की है। रायटरने यह भी लिखा है कि इस निर्णयसे भारतको अत्यधिक सन्तोष हुआ है। मजदूरोंके न भेजे जानेसे जिनके स्वार्थीको कुछ हानि पहुँचेगी उनको छोड़कर कोई कारण नहीं कि दक्षिण आफ्रिकामें भी इससे सब इसी प्रकार सन्तुष्ट न हों। यदि दक्षिण आफ्रिकामें गुलाम-मजदूर रखे गये. और गिरमिटिया मजदूर निश्चय ही गुलाम हैं- - तो वह कभी एक स्वतन्त्र और सुसंस्कृत राष्ट्रको जन्म नहीं दे सकता। कुछ भी हो दक्षिण आफ्रिका के भारतीयोंको एक उल्लेखनीय विजय प्राप्त हुई है। श्री पोलकने, जब वे भारत गये थे तब, गिरमिटिया मजदूरोंकी प्रथा बन्द करानेकी दिशामें अपनी सारी ताकत लगा दी थी और इस अत्यन्त सन्तोष- जनक परिणामका श्रेय उन्हींको है ।

माननीय प्रोफेसर गोखलेके प्रति तो हम जितना अधिक आदर व्यक्त करें कम है । उन्होंने अपने ऊपर अनेक दुस्साध्य कामोंका भार ले रखा है । उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता; फिर भी उन्होंने इस प्रश्नके अध्ययनमें जितना समय दिया उतना किसी अन्य भारतीयने नहीं । हमारे लिए किये गये उनके इस महान कार्यने हमें उनके प्रति बहुत ऋणी बना दिया है। हम आशा करते हैं कि स्वतन्त्र भारतीय आबादीकी हालत सुधारनेके लिए क्या कुछ किया जा सकता है, इसपर बिना कोई विचार किये भारत- सरकार अपने इस निश्चयसे पीछे नहीं हटेगी । गिरमिटिया प्रथाका विरोध हम इस- लिए नहीं कर रहे हैं कि नेटालमें गिरमिटिया मजदूरोंको खास तौरपर बहुत कष्ट दिया जा रहा है, बल्कि इसलिए कर रहे हैं कि वह प्रथा अपने-आपमें बुरी है । भले ही इन मजदूरोंके मालिक संसारके सबसे अधिक दयालु व्यक्ति हों, लेकिन वह प्रथा