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पत्र : चंचलबेन गांधीको

सामने एक ही उपाय है और वह उपाय सीधा-सादा है । शेष उपाय मृग मरीचिकाके समान है

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ७-१-१९११

३५३. पत्र : चंचलबेन गांधीको

टॉल्स्टॉय फार्म
रविवार, पौष सुदी ७, [ जनवरी ८ १९११ ]

चि० चंचल,

तुम्हारी लम्बी और मजेदार चिट्ठी पढ़कर बड़ी खुशी हुई। बा ने भी उसे रस लेकर पढ़ा। हरिलाल कल छूटेगा, तब पढ़ेगा। मुझे दफ्तर में समय नहीं मिलता, इसलिए आज ही लिखे डालता हूँ । इस समय मैं फार्मपर हूँ । रातके नौ बजे हैं ।

'इंडियन ओपिनियन' तुम्हें नियमसे मिलता होगा। क्या तुम कभी घूमने भी जाती हो? तुमने पढ़नेका अभ्यास रखा है, यह अच्छा है ।

मैं चाहता हूँ कि लोकलाजके खयालसे भी तुम गहने न पहनो । गहनोंमें कोई शोभा नहीं है । स्त्री-पुरुष, दोनों का पहला और सच्चा आभूषण आचरण-निष्ठा है । वह तुम्हारे पास है, और यही बड़ा आभूषण है । रही कान-नाकमें पहनने के हमारे रिवाजकी बात, सो वह तो मुझे जंगलीपन ही लगता है; और ऐसा गोरों आदिकी नहीं, अपनी ही [ सभ्यताकी ] दृष्टिसे लगता है । मेरा खयाल है कि कवियोंने रामचन्द्रजी, सीताजी आदिके बारेमें आभूषण पहनने की जो बात कही है, वह उस [कविके ] कालकी रूढ़िकी ही द्योतक है। नहीं तो मुझे तो भरोसा नहीं होता कि परदुःखभंजन रामचन्द्रजी अथवा अतिपवित्र सीताजी अपने शरीरपर रत्तीभर भी सोना रखती होंगी । चाहे जो हो, हम यह बात तो सहज ही समझ सकते हैं कि नाक-कान छेदकर उसमें कुछ पिरोने अथवा गले या हाथमें कुछ पहन रखनेमें कोई शोभा नहीं है । किन्तु हाथमें न पहनना अशुभ माना जाता है इसलिए उसके बारेमें मैं कुछ नहीं कहता । लोका- पवाद रोकने के लिए कलाईमें कुछ डाल लिया जाये, यह काफी है। ये मेरे विचार हैं। इनपर सोचो और जो ठीक जान पड़े सो करो। मेरा लिहाज करके कुछ करनेकी जरूरत मत समझना ।

रामदास और देवदास खेलते-कूदते रहते हैं । २० लड़के हैं । इसलिए यहाँ उनका जी ठीक रम गया है । बा को भी दूसरी महिलाओंका संग मिल गया है, इसलिए देखता हूँ कि वह भी प्रसन्न है। उसने अभी तो चाय छोड़ दी है और उसे ठंडे पानीसे नहाने की आदत पड़ गई है। १. पत्रमें हरिलाल गांधीके छूटनेका उल्लेख है; वे ९ जनवरीको छूटे थे ।