पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/४७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



डॉक्टर गुल
४२९

मेरे विषय में श्री क्विनने जो कुछ कहा, वह तो अतिशयोक्ति ही हुई । उसका यह अर्थ नहीं है कि मैं किसी खास ऊँची स्थितिमें पहुँच गया हूँ । बल्कि श्री क्विन किसी साधारण सदाचारी व्यक्तिके सम्पर्क में नहीं आये, इसलिए मुझसे मिलकर मुग्ध हो गये हैं । जहाँ वृक्ष नहीं होता, वहाँ एरंड ही द्रुम हो जाता है- • यहाँ यह कहावत ठीक बैठती है ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू ० ५०७४ ) से ।

सौजन्य : नारणदास गांधी ।

३५५. डॉक्टर गुल

हम श्री यूसुफ गुलको उनके पुत्रके डॉक्टर हो जानेपर बधाई देते हैं । उनको अन्य अनेक स्थानोंसे बधाईके तार मिले हैं। डॉक्टर गुलने इंग्लैंडमें अच्छा नाम कमाया है। वे सदा पढ़ाई में मशगूल रहते थे । डॉक्टरीकी परीक्षा कोई सामान्य परीक्षा नहीं है । फिर भी डॉक्टर गुलने अपनी सभी परीक्षाएँ पहली बार ही में पास कर लीं ।

अब डॉक्टर गुल अपनी उपाधिका क्या उपयोग करेंगे ? उनके पिता सार्वजनिक कार्यकर्ता के रूप में अपरिचित नहीं हैं। डॉक्टर गुल उतना तो कर ही सकते हैं। किन्तु भारतीय समाज उनसे अधिककी आशा करता है ।

डॉक्टर गुलके सामने दो रास्ते हैं । वे अपनी उपाधिका उपयोग केवल पैसा कमानेमें कर सकते हैं । इसे हम शिक्षाका दुरुपयोग मानेंगे। दूसरा मार्ग है कमाई करते रहकर भी अपनी जातिकी सेवा कर सकनेका । यह उसका सदुपयोग माना जायेगा ।

डॉक्टर गुलके बारेमें हमारा जो अनुभव रहा है, उसके आधारपर यही कहा जा सकता है कि वे अपनी योग्यताका सदुपयोग ही करेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १४-१-१९११