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पत्र: छगनलाल गांधीको

हो गई है। साम्राज्य सरकारने जनरल स्मट्सकी कुछ बातें स्वीकार नहीं कीं । खयाल है कि स्मट्सने माँग यह की है कि गिरमिटियोंकी गिरमिटकी अवधि भारत में समाप्त हो, अर्थात् भारत सरकार इस तरहके नियमको स्वीकार करे कि वे अनिवार्य रूपसे वापस चले जायें तभी वे [ स्मट्स ] ट्रान्सवालके संघर्षको समाप्त करेंगे। यह भी जान पड़ता है कि जनरल स्मट्सने खूनी कानून रद करना और कानूनकी नजर में नये भारतीयोंको एक-जैसे अधिकार देना स्वीकार करते हुए अन्य शर्तोंको सख्त बनाने- के लिए कहा। साम्राज्य सरकारने इसे नहीं माना। इस कारण नया विधेयक रुक गया जान पड़ता है। यह खबर उड़ती हुई और अन्दाजिया है; इसलिए बहुत विश्वासके योग्य नहीं है। फिर भी जो सत्याग्रह - संघर्षके समर्थक हैं, जो इस संघर्षको बहुमूल्य समझते हैं उन्हें मैं सावधान कर देता हूँ कि यदि इस समय समझौता न हुआ तो संघर्ष शायद वर्षों चले । यदि यह हुआ तो जो रुपया पैसा है वह खुट जायेगा और सत्याग्रहियों की स्थिति बहुत ही खराब हो जायेगी, तथा वे केवल समाजके सम्पन्न लोगों पर निर्भर रह जायेंगे । ऊपरकी बात मैंने इसीलिए कही है कि यदि खाने-पीनेकी चीजें विभिन्न भारतीय सज्जन भेजते रहें तो बहुत बचत हो सकेगी ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २१-१-१९११

३५८. पत्र : छगनलाल गांधीको

टॉल्स्टॉय फार्म
पौष वदी ६, [ जनवरी २०, १९११ ]

चि० छगनलाल,

तुम्हारी चिट्ठी मिली। मुझे लगता है कि तुम्हें वहाँ छः महीने से ज्यादा समय हो चुका है । चि० मगनलालने पूछा है कि मैं तुम्हें वहाँ कबतक रखना चाहता हूँ । इसलिए तुम्हारे लौटने के विषय में चर्चा करना चाहता हूँ। डॉक्टर [ मेहता ] क्या कहते हैं, इसे एक ओर रखकर यह लिखो कि तुम खुद क्या सोचते हो। यह माने लेता हूँ कि तुम्हारी तबीयत सुधर गई है और अब तो तुम फीनिक्स ही आओगे। किन्तु, मेरे खयालसे इस मामलेमें तुम अब भी स्वतन्त्र हो । डॉक्टर [ मेहता ] का और मेरा दोनोंका खयाल है कि तुम्हें जो अच्छा लगे, वही करो। मेरे मनमें तो यह बात थी कि तुम लन्दन में एक बरस रहो और जो अनुभव प्राप्त करना हो उसे प्राप्त करो और जो सीखना चाहो, सीखो। पढ़ना-लिखना तो जिन्दगी-भर चलेगा। यदि तुमने वहाँके विशिष्ट वातावरणका आनन्द ले लिया तो मेरे विचारमें विलायतकी मुसाफिरी पूरी हो गई। किन्तु इस सबपर तुम्हारा जो खयाल हो, सो निःसंकोच मुझे लिखना । १. यह पत्र छगनलाल गांधीके लन्दन-निवास ( अर्थात्, जून १९१० से जनवरी १९११ ) के अन्तिम दिनों में लिखा गया था । सन् १९११ में पौष वदी ६, जनवरी २० को पड़ी थी ।