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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बच्चे, हरिलाल वगैरा, फार्मसे जोहानिसबर्ग [ २० मील ] पैदल गये और आये । मैंने पैसेकी बचतके विचारसे पैदल जाने-आनेकी बात सुझाई थी; उसे उन्होंने माना और उनकी आजमाइश हो गई। देवा' भी गया-आया, पुरुषोत्तमदास भी । यहाँ बच्चोंका स्वास्थ्य तो बहुत अच्छा हो गया है। नैतिकता आदिका भी विकास हुआ है या नहीं, इसकी परख नहीं हो सकती। यहाँ बहुत विचित्र खिचड़ी हो गई है।

मोहनदासके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]

अब मुझे नहीं लगता कि समझौता होगा। मैंने इस विषयमें 'इंडियन ओपिनियन' में जो लिखा है, पढ़ लेना ।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति ( सी० डब्ल्यू ० ५०७५ ) से । सौजन्य : नारणदास गांधी ।

३५९. छोटाभाईका मुकदमा

श्री छोटाभाईको हम उनकी जबरदस्त जीतपर बधाई देते हैं। उन्होंने अपने बेटेके लिए लड़ाई लड़कर अप्रत्यक्ष रूपसे समस्त जातिकी लड़ाई भी लड़ी है। यदि वे केवल अपने बेटेका ही बचाव करना चाहते तो वे सरकारके पैरों पड़कर भी सम्भवतः अपने अधिकारकी रक्षा कर लेते। किन्तु उन्होंने तो बहादुरीके साथ लड़नेका ही निर्णय किया ।

श्री छोटाभाईने कानूनको मान लिया है; और इस मुकदमेमें बात भी इतनी ही थी कि लड़के को भी कानूनके अधीन मान लिया जाये। यह निःसन्देह दुःखजनक बात है फिर भी लड़केका प्रश्न, बड़ा प्रश्न था । उस प्रश्नका निर्णय जल्दी या देरीसे करना ही पड़ता। इसलिए उन्होंने कानूनकी व्याख्या करवाकर उस हद तक सत्याग्रहकी सेवा की है। हम आशा करते हैं कि अब माँ-बाप अपने बेटोंके प्रमाणपत्र लेनेके लिए जल्दी नहीं मचायेंगे । जो निर्णय दिया गया है, वह कुछ भागा नहीं जाता; समझौता होनेपर सभी बच्चोंके अधिकारोंकी रक्षा हो जायेगी।

न्यायालयका निर्णय किस प्रकारका है, इसका पता हमें बादमें लगेगा। इतना तो निश्चित हो गया है कि सरकारने लड़कोंपर प्रहार करनेमें अपने तई कुछ उठा नहीं रखा, किन्तु उसमें वह असफल रही है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २८-१-१९११

१. देवदास । २. देखिए "ट्रान्सवालकी टिप्पणीसे ", पृष्ठ ४३० और " जोहानिसबर्गको चिट्ठी ", पृष्ठ ४३०-३१ । ३. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया जनवरी २५, १९११ का निर्णय । ४. मई १९११ के अस्थायी समझौते में बालकोंके अधिकारोंकी रक्षाकी व्यवस्था की गई थी।