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३६०. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

बुधवार [ फरवरी १, १९११]

प्रवासी विधेयक

'स्टार' का संवाददाता सूचित करता है कि सरकार प्रवासी विधेयक तैयार कर रही है। उसका कहना है कि यह विधेयक महत्त्वपूर्ण होगा और इससे सरकारकी एशियाई-नीति जाहिर होगी। ट्रान्सवालकी धारासभा में श्री स्टैलर्डके प्रस्तावपर' जो बहस हुई, उससे जाहिर होता है कि एशियाई प्रश्न बहुत गम्भीर रूप धारण करेगा । श्री स्टैलर्ड कहते हैं कि यूरोपीय और एशियाई आपसमें कभी मिल ही नहीं सकते । उन्होंने व्यापार इत्यादिका सवाल नहीं उठाया । उन्होंने तो एक ही बात कही कि एशियाइयोंका विरोध सिर्फ इसलिए किया जाना चाहिए कि वे एशियाई हैं । १६ सदस्योंने उनके प्रस्तावका समर्थन किया। इनमें अधिकांश लोग अंग्रेज थे । [ दक्षिण आफ्रिकामें ] जन्मे हुए भारतीयोंके निकाल बाहर करनेकी बातको उस प्रस्तावमें से अलग कर दिया गया ।

अधिकांश डच सदस्योंने इस प्रस्तावका विरोध किया। उनका इस प्रकार विरोध करना समझमें नहीं आता । यह माननेका कोई कारण नहीं है कि वे हमारे पक्षमें हैं । प्रवासी विधेयक जब प्रकाशित होगा, तब ज्यादा बातें समझमें आयेंगी ।

सत्याग्रहकी सफलता

माननीय ड्यूक-जैसे व्यक्तिपर भी सत्याग्रह संघर्षका प्रभाव पड़ा है। उन्होंने इस संघर्षका महत्त्व समझा है । रायटरकी खबर है कि जब विलायतमें उनका सम्मान किया गया, तब उन्होंने इस संघर्षका उल्लेख करते हुए कहा कि मेरी समझमें भारतीय प्रश्नका हल निकल आयेगा ।

छोटाभाईका मामला

श्री छोटाभाईको बधाइयोंके बहुत-से तार और पत्र मिले हैं। खोलवडकी' महफले- सयफ -उल-इस्लामसे भी एक तार मिला है।

श्री छोटाभाई इन सब बधाई देनेवालोंका आभार मानते हैं और सूचित करते हैं कि उन्होंने मामला दायर करनेमें जो जोखिम उठाई, वह तो उनका केवल कर्तव्य ही था । समाजने उसे इतना उल्लेखनीय माना, इसपर उन्हें बहुत सन्तोष है । १. प्रस्तावमें संघीय संसद से भविष्य में एशियाइयों के प्रवासको बिलकुल रोक देने और जो अपने-अपने देशोंको वापस भेज देने " संघमें पैदा नहीं हुए हैं उन सभी एशियाइयोंको दक्षिण आफ्रिकासे की सिफारिश की गई थी। २. जनवरी ३०, १९११ को गिल्डडॉलमें भोज । ३. गुजरातके जिला सूरत में स्थित । १०-२८