['ट्रान्सवाल ] लीडर', 'स्टार' आदि अखवारोंने सरकारकी कार्रवाईकी निन्दा की है। उनका कहना है कि जिन नाबालिगोंके मां-बापको ट्रान्सवालमें रहनेका हक है, उन्हें बालिग होनेपर देशसे बाहर कर देना समझमें नहीं आता ।
जज महोदयके फैसलेकी नकल अभी हम तक नहीं पहुँची है । जैसे ही हमें मिलेगी, हम उसे प्रकाशित कर देंगे। जान पड़ता है, केप टाउनसे उसके मिलनेमें कुछ समय लगेगा ।
इंडियन ओपिनियन, ४-२-१९११
३६१. पत्र : मगनलाल गांधीको
माघ सुदी २, [ फरवरी १, १९११]
तुम्हारा पत्र मिला । देशमें जमीन लेना अभी उतावली कहलायेगा । नारणदासको उसका अनुभव नहीं है। जमीन खरीदने में स्वार्थका भाव आ जानेकी सम्भावना है। उतावलीकी जरूरत नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि यहाँसे कोई अनुभवी आदमी जाये तो कुछ बन सकता है । मेरा तो यह खयाल है कि जब देशमें जमीनकी जरूरत होगी तब वह सुभीतेसे मिल ही जायेगी। फिर भी अगर इस विषयमें नारणदासके मनमें बहुत उत्साह हो तो उसे तोड़ना नहीं है। काशी नहीं आयेगी यह तो, लगता है, बुरा हुआ। तुमने प्रयत्न करके देख लिया, इसलिए फिलहाल तो उसके आनेकी बात भूल ही जानी है।
बलवन्तरायका' लेख क्या वहाँ है ? तुमने मुझे जो कुछ भेजा है, उसमें तो नहीं है।
मोहनदासके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०७६) से।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।
१. पत्र में श्री छगनलाल गांधीकी पत्नी काशीबेनके उल्लेखसे जान पड़ता है कि यह नवम्बर १५, १९१० को मगनलाल गांधीको लिखे पत्रके बाद (१४ ३८१-८२) लिखा गया होगा । सन् १९११ में माघ सुदी २ को फरवरीकी पहली तारीख थी । २. बलवन्तराय कल्याणराय ठाकुर ( १८६९-१९५१ ); गुजरात के कवि, निबन्धकार और समालोचक ।