३६२. छोटाभाईका मामला
जैसे-जैसे समय बीतता है, इस मामलेके बारेमें नई-नई बातें सूझती जाती हैं । मुख्य न्यायाधीशकी टिप्पणीपर विचार करें तो उससे जनरल स्मट्सका मनसुबा भली- भाँति प्रकट हो जाता है । उन्होंने तो कानूनमें नाबालिगोंको निष्कासित करनेकी गुंजाइश रखी ही थी । किन्तु वह गुंजाइश खत्म हो गई । “यदि धारासभाका इरादा प्रजाकी सुविधा छीन लेनेका हो तो उसे वैसा स्पष्ट शब्दोंमें कहकर करना चाहिए; बात गोल-मटोल नहीं रखनी चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो हम उस कानूनपर अमल नहीं करा सकेंगे।” ये शब्द हैं मुख्य न्यायाधीशके । बात इतनी ही नहीं है कि कानूनमें नाबालिगोंका अधिकार छीन लेनेका इरादा स्पष्ट नहीं है, बल्कि जनरल स्मट्सने विधेयक पेश करते समय अपने भाषण में भी यह नहीं कहा कि इरादा नाबालिगोंको वैध अधिवासी न गिननेका है । यह तो साफ दगा है। दूसरोंके लिए खाई खोदनेवाला स्वयं उसमें गिरता है, सो ट्रान्सवालकी सरकार भी अपनी खोदी हुई खाईमें आप जा पड़ी है ।
इसलिए समाजने अदालतके फैसलेको अधिक महत्त्व देकर ठीक ही किया । छोटाभाईके नाम भेजे गये तारों और सन्देशोंमें लोगोंने कहा है कि आपने बड़े साहसका काम हाथमें लिया था। उन्हें जो प्रशंसा मिली है, निस्सन्देह वे उसके योग्य हैं ।
इंडियन ओपिनियन, ४-२-१९११
३६३. पत्र : नारणदास गांधीको
टॉल्स्टॉय फार्म
माघ सुदी १०, [ फरवरी ८, १९११]
माघ बदी ७ का तुम्हारा पत्र मिला । तुमने प्लेगके बारेमें ठीक सवाल किये हैं । जब राजकोटमें चूहे मरे थे तब मैंने सबको घर या शहर छोड़ने की सलाह दी थी। ये मेरे उस समयके विचार हैं। अब मुझे लगता है कि वह भूल हुई थी। मेरे बहुत-से
१. देखिए " छोटाभाईका मामला ", पृष्ठ ४३२ । २. पत्र में छगनलाल गांधीके भारत पहुँचने की बातका उल्लेख है। इससे जान पड़ता है कि यह पत्र छगनलालके जनवरी ३०, १९११ को इंग्लैंडसे रवाना हो जानेके बाद लिखा गया होगा । सन् १९११ में १० माघ सुदीको फरवरीकी ८ तारीख पड़ती थी । ३. दिसम्बर २४, १९१० । ४. सन् १९०२ के राजकोटके प्लेगके बारेमें । उन दिनों गांधीजी भारतमें लगभग एक वर्षं रहे थे ।