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पत्र : मगनलाल गांधीको

उल्लंघन किया जा सकता है बल्कि उल्लंघन करना कर्तव्य है । जहाँ नीति-विषयक संशय न हो वहाँ तो माता-पिताकी आज्ञाका उल्लंघन भी किया जाता है; करना कर्तव्य है । मुझसे मेरे पिता चोरी करनेको कहें तो वह नहीं करनी चाहिए। मेरा इरादा ब्रह्मचर्य पालन करनेका हो और वे विपरीत आज्ञा दें तो मुझे विनयपूर्वक उनकी आज्ञाका उल्लंघन करना चाहिए । जबतक रामदास और देवदास सयाने नहीं हो जाते, उनका विवाह न करना मैं धर्म मानता हूँ । यदि माता-पिता जीवित होते और उनका विचार विपरीत होता तो भी मैं बहुत विनयपूर्वक उनका विरोध करता । और मैं यह भी मानता हूँ कि इस विषयमें मेरा मन इस हद तक निर्मल हो चुका है कि वे मेरी बात मान लेते ।

इतना काफी है । विशेष शंका हो तो पूछना। मैंने उक्त बातें यह जानकर लिखी हैं कि तुममें सद्वृत्ति है और तुम [ इसका ] अनर्थ नहीं करोगे । पाखण्डी व्यक्ति ऐसा लिखनेपर या तो मुझे उद्धत समझेगा या मेरी बातोंपर मूढ़ विश्वास करके उनका गलत अर्थ निकालकर गलत कारणोंसे बुजुर्गोंकी आज्ञाका उल्लंघन करेगा और जो कुछ मैंने प्लेगके बारेमें लिखा है, उसमें ऐसे अर्थका आरोप करेगा कि उसके उचित इलाजकी दृष्टिसे शराब, मांस आदि लिये जा सकते हैं ।

चि० छगनलालका पत्र आया है। उससे मालूम होता है कि वह अब कुछ दिनों में वहाँ पहुँच जायेगा । कल्याणदाससे' कहना कि यदि वह मुझे पोस्ट कार्ड भी लिखेगा तो मुझे सन्तोष होगा । उसे याद दिलाना कि उसने मुझे जो वचन दिये थे उनमें से एकका भी पालन नहीं किया है।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०७७) से।

सौजन्य : नारणदास गांधी

३६४. पत्र : मगनलाल गांधीको

टॉल्स्टॉय फार्म
माघ वदी १ [ फरवरी १४, १९११]

चि० मगनलाल,

चि० छगनलाल यहाँ आना चाहता है इसलिए [ पहले ] स्वदेश जाकर उसने बुद्धिमानी ही की । वहाँ न जाता तो गलत होता । जब उसका विचार यहाँ आनेका नहीं था तब हमारा आग्रह यह था कि वह यहाँसे होता हुआ [भारत] जाये । अब

१. कल्याणदास जगमोहनदास मेहता; इन्होंने गांधीजीके साथ दक्षिण आफ्रिकामें काम किया था । देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४६ और खण्ड ६, पृष्ठ ४७५ । २. जान पड़ता है, यह पत्र छगनलाल गांधी के ३०-१-१९११ को इंग्लैंडसे भारत रवाना हो जानेके बाद लिखा गया था । सन् १९११ में माघ वदी १ को फरवरीकी १४ तारीख थी।