पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/४८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह यहाँ आ जायेगा, इसलिए मैं उसके स्वास्थ्य के बारेमें निश्चिन्त हूँ । देशमें उसका स्वास्थ्य कभी ठीक नहीं रहेगा।

करामत डर्बन जा सकता है। हम जो कर सकते थे, कर चुके । अब वह अच्छी तरह समझ गया है कि क्या इलाज करवाना चाहिए। यदि वह वैसा न करे, तो उसकी इच्छा।

मोहनदासके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]

मैं तो फिलहाल मुख्यतया चप्पलें बनानेके काममें लगा रहता हूँ । मुझे यह काम पसन्द है और जरूरी भी है। करीब पन्द्रह जोड़ियाँ बन चुकी हैं। वहाँ जब जरूरत पड़े तब नाप भेजना । नाप भेजते समय जहाँ पट्टियाँ चाहिए, वहाँ निशान लगा देना- यानी पैरके अंगूठे और छँगुलीकी बाहरी तरफ।

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०७८) से ।
सौजन्य : रावाबेन चौधरी ।

३६५. पत्र : दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके कार्यकारी जनरल मैनेजरको

[ जोहानिसबर्ग ]
फरवरी २०, १९११

मेरे संघका ध्यान उन रेलवे विनियमोंकी ओर आकृष्ट किया गया है जो इस माहकी पहली तारीखवाली एस० ए० आर० ऑफिशियल टैरिफ बुक, संख्या १', में छपे हैं । इस पुस्तकमें, लगता है, एशियाई यात्रियोंसे सम्बन्धित वे विनियम प्रकाशित किये गये हैं, जो तत्कालीन जनरल मैनेजर श्री बेल, मेरे संघके प्रतिनिधियों और आपके बीच होनेवाली वार्ताके फलस्वरूप, इस प्रान्तकी हद तक रद कर दिये गये थे। अतः आप मुझे यह सूचित करनेकी कृपा करें कि जिन नये विनियमोंका मैं जिक्र कर रहा हूँ क्या वे रद कर दिये गये हैं और क्या पुराने विनियम फिर जारी कर दिये गये हैं । • इसके लिए मैं आपका आभारी होऊँगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-२-१९११

१. इसके बाद गांधीजीने पैरका नमूना देते हुए एक नाप अंकित किया है । २. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था, और इसे ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षके हस्ताक्षरसे भेजा गया था । ३. इसमें से सम्बन्धित उद्धरण १८-२-१९११ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुए थे । ४. देखिए " पत्र : मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धकको ", पृष्ठ २३३ ।