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३६८. जोहानिसबर्गको चिट्ठी

बुधवार [ मार्च १, १९११]

नया विधेयक

आखिरकार नया विधेयक' प्रकाशित हो गया । उसका अनुवाद देनेका समय नहीं है और विस्तारसे उसकी समीक्षा करने का भी समय नहीं है। लेकिन मुझे उसके निम्न- लिखित परिणाम निकलते दिखाई देते हैं :

(१) सन् [ १९०७ का ] कानून २ एकदम रद हो जाता है, किन्तु उसमें एशियाई नाबालिगों के जो अधिकार थे, वे रक्षित रहे हैं ।

(२) पंजीयनका दूसरा कानून [ १९०८ का कानून ३६] रद नहीं होगा ।

(३) अधिकारी जिस भाषामें कहे उसमें ५० शब्द लिख सकनेवाले व्यक्तिको आनेकी इजाजत है। इसमें भारतीय भाषाएँ भी आ जाती हैं, तथापि इसका यह अर्थ नहीं निकलता कि काफी भारतीय आ सकेंगे ।

(४) अधिवासी भारतीयोंकी पत्नियों तथा नाबालिग बच्चोंके अधिकार सुरक्षित नहीं दीखते ।

(५) केप और नेटालमें, पुराने अधिवासियोंके अधिकारोंपर सख्त आँच आती है।

(६) पाँचवीं धारामें उल्लिखित भारतीयोंको अधिवास प्रमाणपत्र दिया जायेगा या नहीं, यह पूरी तरह सरकारकी मर्जीपर निर्भर करेगा ।

(७) अधिकारी जिनके अधिकारको अमान्य कर दे, उन्हें अपील करनेका हक कहाँ दिया गया है, सो दिखाई नहीं पड़ता ।

परिस्थिति इस प्रकारकी है । जनरल स्मट्सके भाषणसे जान पड़ता है कि प्रत्येक प्रान्तमें रहनेवाले भारतीयको प्रान्तसे सम्बन्धित अधिकार ही मिलेगा और प्रतिवर्ष नये व्यक्ति तो बहुत थोड़े दाखिल किये जायेंगे ।

यदि विधेयकके अनुसार ट्रान्सवालमें शिक्षित भारतीयोंको बिना पंजीयन कराये नये सिरेसे प्रवेश मिल सका, तो इस विधेयकसे सत्याग्रहका संघर्ष बन्द हो सकता है। अभी पूरी तरहसे नहीं कहा जा सकता कि विधेयकका यह अर्थ है अथवा नहीं। लेकिन, नेटाल और केपका क्या होगा ? यह तो विचारणीय हैं। यदि कानून बन जाये तो शिक्षित व्यक्ति वहाँ आज जिस प्रकार निर्बन्ध आ सकते हैं, फिर उस प्रकार नहीं आ सकेंगे और वहाँके अधिवासियोंकी रक्षा भी उससे नहीं होती । नेटाल और केपको तत्काल कदम उठाना चाहिए। मुझे लगता है कि पहले तो जनरल स्मट्सको लिखा जाये और बादमें असेम्बलीसे प्रार्थना की जाये । १. देखिए परिशिष्ट ८ । २. फरवरी २८, १९१० को संघ-विधानसभा में दिया गया भाषण । ३. देखिए " नेटालका प्रार्थनापत्र : संघ-विधानसभाको”, पृष्ठ ४७५-७६ ।