यह बड़ा नाजुक समय है। अभीतक विधेयक प्रकाशित होकर सबके सामने नहीं आया है । फिर भी ऊपरका सारांश' मुद्रित विधेयकके आधारपर दिया गया है।
इंडियन ओपिनियन, ४-३-१९११
३६९. भेंट : 'ट्रान्सवाल लीडर' को
जोहानिसबर्ग मार्च
१, १९११
पिछली शामको एक पत्र प्रतिनिधिने श्री गांधीसे [ प्रवासी प्रतिबन्धक ] विधेयक के विषयमें उनके विचार जानने चाहे । उन्होंने कहा :
यह विधेयक इतना व्यापक और जटिल है कि मैं अभीतक उसकी तह तक नहीं पहुँच पाया हूँ । अनाक्रामक प्रतिरोध तो केवल सन् १९०७ के अधिनियम २ को रद करवाने और ट्रान्सवालमें एशियाइयोंको, सिद्धान्त रूपमें प्रवेशके सम्बन्ध में, कानूनी समानता दिलाने के लिए जारी रखा गया है। नाबालिगोंके अधिकारोंकी बातको छोड़कर अन्य सभी दृष्टियोंसे सन् १९०७ के कानून २ के रद हो जानेसे पहला उद्देश्य पूरा हो जाता है । परन्तु शैक्षणिक परीक्षाका अमल किस तरह होगा, यह मैं ठीक नहीं समझ पाया हूँ। अगर विधेयकका मन्शा यह है कि उसके अन्तर्गत नियुक्त अधिकारी द्वारा तय की गई शैक्षणिक कसौटीपर खरा उतरनेवाला व्यक्ति ट्रान्सवालमें प्रवेश कर सकेगा - दूसरे प्रान्तोंमें तो, जैसा मैं मानता हूँ, वह इस प्रकार प्रवेश कर ही सकेगा - और इसके लिए उसे सन् १९०८ के कानून ३६ के जो मेरी समझमें अनुसार, रद नहीं किया जा रहा है, अपना नाम दर्ज करानेकी जरूरत नहीं रहेगी, तो अना- क्रामक प्रतिरोध बन्द हो जायेगा । अगर पहले खण्डका यही अर्थ है और यदि इस अर्थसे स्थिति सन्तोषजनक रहती है तो उस स्थितिको विधेयकमें बिलकुल स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए। जो लोग शैक्षणिक जाँचके अन्तर्गत संघ राज्य में प्रवेश करेंगे, विधेयकमें मुझे उनकी पत्नियों और नाबालिग बच्चोंके लिए कोई संरक्षण दिखाई नहीं दिया। आज अखबारोंमें जनरल स्मट्सका जो भाषण आया है उससे मैंने यह समझा है कि जिन एशियाइयोंको संघ-राज्यमें प्रवेश मिलेगा वे वैसे अध्यादेशोंके रहते हुए भी, जैसा कि ऑरेंज फ्री स्टेटमें एशियाइयोंपर लागू है, केवल निवासके लिए दूसरे सभी
१. मार्च ४, १९११ के इंडियन ओपिनियन के पूरक अंकके रूपमें पूरा विधेयक छपा था । २. देखिए पिछला शीर्षक । ३. यह भेंट इंडियन ओपिनियन में “मिस्टर गांधीज व्यूज़ ” (श्री गांधीके विचार ) शीर्षकसे प्रकाशित हुई थी। ४. देखिए परिशिष्ट ८ ।