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पत्र : ई०एफ० सी० लेनको

प्रवासियोंकी भाँति सारे संघमें कहीं भी बेरोकटोक जा सकेंगे। केप और नेटालमें बहुत-से ब्रिटिश भारतीय इस विधेयकके अर्थके बारेमें मुझसे तरह-तरह के सवाल पूछेंगे । परन्तु इन प्रान्तोंमें एशियाइयोंपर चाहे जो भी प्रतिबन्ध लगाये जायें, उनके कारण वर्तमान अनाक्रामक प्रतिरोधको जारी नहीं रखा जा सकेगा। इस विधेयककी व्याख्याके बारेमें उत्पन्न होनेवाली कठिनाइयोंकी तरफ अगर मैं सरकारका ध्यान दिलाऊँ' तो मैं मानता हूँ कि सरकार बुरा नहीं मानेगी। मैं जानना चाहता हूँ कि इन प्रान्तोंमें अभी जो एशियाई बसे हुए हैं उनके अधिकारोंकी रक्षाके लिए क्या किया गया है। नेटाल और केप, दोनोंके कानूनोंमें अधिवासी एशियाइयोंको प्रतिबन्धक धाराओंसे बरी कर दिया गया है । परन्तु नवीन विधेयकमें यह धारा तथा ऐसे एशियाइयोंकी पत्नियों और नाबालिग बच्चोंको छूट देनेवाली धारा निकाल दी गई है। और मुझे विवश होकर सोचना पड़ता है कि विधेयककी धारा २५ की उपधारा २ उन एशियाइयोंकी स्थितिको संकटपूर्ण बना देती है, जो अपने प्रान्त से कुछ समय के लिए बाहर जाना चाहें। जनरल स्मट्सने कहा है कि उनका इरादा दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले एशियाइयोंको परेशान करनेका नहीं है । इसे देखते हुए मैं आशा करता हूँ कि विधेयकमें इस तरहका संशोधन कर दिया जायेगा, जिससे उनकी स्थिति आजकी भाँति सुरक्षित बनी रहे। मुझे कहीं वह धारा भी नजर नहीं आई जो आम तौरपर ऐसे विधेयकों में होती है अर्थात् जो, जिन व्यक्तियोंको प्रवासी अधिकारी निषिद्ध व्यक्ति ठहरा दे, उन्हें यथाशक्ति अपने प्रवेश या पुनः प्रवेशके अधिकारको सिद्ध करनेकी सुविधा देती है ।

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रान्सवाल लीडर, २-३-१९११

३७०. पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च २, १९११

श्री अर्नेस्ट सी० लेन

जनरल स्मट्सके निजी सचिव
केप टाउन

प्रिय श्री लेन,

मैंने सरकारी 'गज़ट' के गत मासकी २५ तारीखके विशेष अंकमें प्रकाशित प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकको अभी-अभी पढ़ा है। चूंकि यह मुझे अत्यन्त जटिल प्रतीत होता है, इसलिए मैं निश्चयके साथ नहीं कह सकता कि उसका क्या अर्थ लगाया जाये । मैं ट्रान्सवालमें लम्बे अरसेसे चलनेवाले एशियाई संघर्षको समाप्त करनेमें यथाशक्ति

१. देखिए अगला शीर्षक 1 २. इस पत्रका मलविदा पिछले शीर्षकले पहले तैयार किया गया था; देखिए “पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको ", पृष्ठ ४४६ ।