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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सहायता देने को अत्यन्त इच्छुक हूँ, इसलिए जनरल स्मट्सके समक्ष निम्नलिखित बातें प्रस्तुत करनेकी धृष्टता करता हूँ ।

सत्याग्रहको जारी रखनेका उद्देश्य १९०७ के कानून २ को रद कराना और ट्रान्सवालमें प्रवासकी हद तक एशियाइयोंको कानूनकी दृष्टिमें सैद्धान्तिक समानताका स्थान दिलाना है, फिर व्यवहारमें भले ही प्रतिवर्ष प्रवेश पानेवाले उच्च शिक्षा प्राप्त ब्रिटिश भारतीयोंकी संख्या घटाकर, मान लीजिए, ६ निश्चित कर दी जाये ।

देखता हूँ कि १९०७ का कानून २, एशियाई नाबालिगोंके अधिकारोंकी बातको छोड़कर अन्य सभी बातोंमें, रद कर दिया जायेगा । इसलिए व्यवहारतः इससे हमारा पहला उद्देश्य तो पूरा हो जाता है । परन्तु शैक्षणिक जाँच सम्बन्धी धारा और उसका प्रभाव मेरी समझमें ठीक-ठीक नहीं आ सका। चूंकि [ विधेयकका ] खण्ड १, पहली अनुसूची में वर्णित कानूनोंको रद करनेके साथ-साथ दूसरे कानूनोंको भी उस हद तक रद करता है जिस हद तक वे विधेयककी व्यवस्थाओंके प्रतिकूल हैं, इसलिए मुझे लगता है कि जो शिक्षित एशियाई प्रवासी अधिकारी द्वारा निर्धारित परीक्षा पास कर लेंगे, वे ट्रान्सवालमें प्रवेश कर सकेंगे और रह सकेंगे तथा वे १९०८ के कानून ३६ के अन्तर्गत पंजीयन करानेके लिए बाध्य नहीं होंगे। यदि विधेयकके प्रथम खण्डका यही अर्थ हो तो ट्रान्सवालके संघर्षका सुखमय अन्त हो सकता है । किन्तु मैं यह सुझानेकी धृष्टता करता हूँ कि स्वयं विधेयकमें यह अर्थ साफ-साफ और असन्दिग्ध रूपसे व्यक्त कर दिया जाना चाहिए । कृपया यह भी बतायें कि पंजीकृत एशियाइयोंकी पत्नियोंको विधेयककी किस धाराके अन्तर्गत संरक्षण दिया गया है ।

आपका विश्वस्त,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२२२) की फोटो नकल और १८-३-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से भी ।

३७१. पत्र : आर० ग्रेगरोवस्कीको

जोहानिसबर्ग
मार्च २, १९११

प्रिय श्री ग्रेगरोवस्की,

मुझे मानना पड़ेगा कि संलग्न विधेयकने', जिसकी प्रति शायद केवल मेरे ही पास है, मुझे चकरा दिया है। उलझन इसलिए और बढ़ गई है कि मुझे जनरल स्मट्सकी नीयतपर शक है । इसीलिए मुझे भरोसा नहीं होता कि मैं इसकी सही व्याख्या कर पाऊँगा । अतः मैं इसमें आपकी मदद चाहता हूँ । १. जोहानिसबर्गके एक वकील; कानूनी तथा वैधानिक मामलोंमें गांधीजी अक्सर इनकी सलाह लिया करते थे । २. प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक (१९११ ); देखिए परिशिष्ट ८ ।