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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कृपया इसे मामलेका संक्षिप्त विवरण मानकर इस पत्रपर विचार करेंगे । मेरा खयाल है मुझे आपके पास नेटालके प्रवासी कानूनोंकी प्रतियाँ भेजने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि रद कर दिये जानेके कारण उनका इस प्रश्नपर कोई असर नहीं पड़ता ।

आपका विश्वस्त,
मो० क० गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२२३) की फोटो- नकलसे ।

३७२. पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च २, १९११

प्रिय श्री रिच,

आप कार्य स्थलपर ऐन वक्तपर ही पहुँचे हैं;' और 'टाइम्स' के संवाददाताके अनुसार आप "ब्रिटिश भारतीयोंकी माँगोंका समर्थन करनेवाले स्थानीय लोगोंके साथ तुरन्त सहयोग प्रारम्भ कर देनेवाले हैं।" वहाँ आपको नया विधेयक देखनेको मिलेगा । मैंने ग्रेगरोवस्कीके नाम अपने पत्रमें उसकी जो व्याख्या की है वह भी संलग्न कर रहा हूँ । स्मट्सके नाम मेरा पत्र' और 'लीडर' को दी गई भेंट-वार्ता भी नत्थी है। पहले तो मेरा खयाल था कि इसी भेंट-वार्ताके आधारपर स्मट्सको पत्र लिखूं । यह भेंट-वार्ता वास्तवमें स्मट्सको भेजनेके लिए पहले लिखे गये पत्रपर ही आधारित है। कार्टराइटकी राय थी कि मुझे पत्रको प्रकाशित करके स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए। मैंने उनको बताया कि वैसा करना अक्लमंदी नहीं होगी। इसीलिए उन्होंने उसके खास-खास मुद्दोंको एक भेंट-वार्ताके रूपमें प्रकाशित करा दिया। बादमें, मैंने • अपनी राय बदल दी और सोचा कि मुझे स्मट्सको केवल संघर्षके सम्बन्धमें ही लिखना चाहिए, ताकि आगे चलकर कोई विवाद उठनेपर मसला और अधिक न उलझाया जा सके । सैद्धान्तिक दृष्टिसे तो यह विधेयक सराहनीय है, क्योंकि इस विधेयकमें भारतीय भाषाओंका दर्जा यूरोपीय भाषाओंके बराबर मान लिया गया है। लेकिन मेरा खयाल है कि व्यवहारमें केप और नेटालके एशियाइयोंपर इसका प्रभाव बड़ा अनर्थकारी होगा । मेरे विश्लेषणसे आपको यह स्पष्ट हो जायेगा । आप केप प्रवासी

१. श्री रिच वस्तुतः मार्च ७, १९११ को केप टाउन पहुँचे । २. देखिए “पत्र : ई० एफ० सी० लेनको ", पृ४ ४४३-४४ । ३. देखिए “भेंट : ट्रान्सवाल लीडरको", पृष्ठ ४४२-४३ । ४. ट्रान्सवाल लीडरके सम्पादक, और गांधीजी तथा श्री स्मट्सके मित्र । भारतीयोंके प्रति उनकी बड़ी सहानुभूति थी और यथोचित समझौता करानेमें उनकी दिलचस्पी थी ।